Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Somsen Bhattarak, Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 417
________________ सोमसेनभट्टारकविरचित । दांत उगे हुए बालकके मरणका सूतक माता पिता और भाइयोंके लिए दश दिन तकका और प्रत्यासन्न ( निकटवर्ती ) बांधवों के लिए एक दिनका है। तथा जो बंधु अप्रत्यासन्न हैं-निकटवर्ती नहीं हैं वे सिर्फ स्नान करें। चार पीढ़ी तक के बंधुओं को प्रत्यासन्न बंधु कहते हैं। मृत बालकको स्नान कराते समय, वस्त्र पहनाते समय श्मशानको ले जाते समय और जलाते समय आसन्न बंधुही उसका स्पर्श करें, अप्रत्यासन्नबंधु स्पर्श न करें ॥ ५६-५८ ॥ ३७६ कृतचौलस्य बालस्य पितुर्भ्रातुश्च पूर्ववत् । आसन्नेतरबन्धूनां पञ्चाकाहमिष्यते ।। ५९ ।। चौल-संस्कार किये हुए बालकके मरणका सूतक माता, पिता और भाइयोंको दश दिन तकका आसन्न बंधुओं को पांच दिन तकका और अनास्न्न बंधुओं को एक दिनका है ॥ ५९ ॥ मरणे चोपनीतस्य पित्रादीनां तु पूर्ववत् । आसन्नबांधवानां च तथैवाशौचमिष्यते ॥ ६० ॥ पञ्चमानां तु षड्रात्रं षष्ठानां तु चतुर्दिनम् । सप्तमानां त्रिरात्रं स्यात्तदूर्ध्वं न (तु) प्लवं मतम् ॥ ६१ ॥ उपनयन संस्कार किये हुए बालकके मरणका सूतक माता, पिता और भाइयोंको दश दिनका है और चौथी पीढ़ी तक के आसन्न बांधवोंकोभी दश दिनका है, तथा पांचवीं पीढ़ीवालों को छह दिनका, छठीवालोंको चार दिनका और सातवीं वालोंको तीन दिनका है। तथा सातवीं पीढ़ी से ऊपर के गोत्रज बांधव सिर्फ स्नान करें ॥ ६०-६१ ॥ जननाशौच । जननेऽप्येवमेवायं मात्रादीनां तु मृतकम् । तदा नार्धं पितुर्भ्रातुर्नाभिकर्तनतः पुरा ॥ ६२ ॥ पिता दद्यात्तदा स्वर्णताम्बूलवसनादिकम् । अशुचिनस्तु नैव स्युर्जनास्तत्र परिग्रहे ॥ ६३ तदात्व एव दानस्यानुपपत्तिर्भवेद्यदि । तदहः सर्वमप्यत्र दानयोग्यमिति स्मृतम् ।। ६४ ।। जननाशौच में भी माता आदिको इसी तरहका सूतक है अर्थात् माता, पिता, भाई और आसन्न बंधुओंको दश दिनका, पांचवीं पीढ़ीवालोंो छह दिनका, सातवीं वालोंको तीन दिनका है; परंतु बालक उत्पन्न होनेपर नाभिकर्तनसे पहले पहले पिता और भाईको सूतक नहीं है इसलिए उस समय बालकका पिता और भाई सोना, तांबूल, वस्त्र आदिका दान देवें । उस दान के लेनेवाले भी अशुचि -सूतकी नहीं होते । यदि बालक उत्पन्न होनेके अनन्तर ही पिताके लिए सूतक मॉन लिया जाय या उस दानके लेनेवालोंको अशुचि मान लिया जाय तो दान देनेकी रिवाज ही नहीं बनेगी । इसलिए बालकोत्पत्तिका वह सारा ही दिन दान देने योग्य है । ६२-६४ ॥ तदा पुम्प्रसवे मातुर्दशाहमनिरीक्षणम् । अयं विंशतिरात्रं स्यादनधिकारलक्षणम् ।। ६५ ।।

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