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सोमसेनभट्टारकविरचित
अथ सप्तपदी-सप्तपदी-विधि । _अभुक्तामयतीशान्यां वधू सप्तपदानि तु ।
साऽभुक्ता समयेत्पूर्व दक्षिणं पादमात्मनः ॥ ५७ ॥ अभुक्ता (जिसने भोजन नहीं किया है ) कन्याको ईशान दिशाको ओर सात पैंड ले जाय, और वह कन्या भी प्रथम अपना दाहिना पैर आगे बढ़ाकर सात पैंड जाय । इसे सप्तपदी कहते हैं । भावार्थ-यह संक्षेपसे सप्तपदीका लक्षण है। सप्त पैंड किस तरह ले जाय और किस तरह भनय यह सब प्रयोगविधि आगे कही गई है ॥ ५७ ॥ ___ इति प्रसंगात् पंचांगविवाहः परिकीर्तितः—इस तरह प्रसंग पाकर विवाहके पांच अंग लक्षणरूपसे कहे गए हैं । प्रयोगविधि विस्तारके साथ आगे कहेंगे ।
विशेषविधि अंकुरारोपण । विवाहस्याथ पूर्वेयुराचार्यों बन्धुसंयुतः । संस्नातो धौतवस्त्राङ्गो गृहयज्ञं प्रकल्पयेत् ।। ५८ ॥ विवाहाह्नस्तु पूर्वाह्ने वरं संस्नाप्य भूषणैः । वस्त्रैश्च भूषयेद्रम्यैर्निशाचूर्णाद्यलंकृतम् ॥५९ ॥ सौभाग्यवनिताभिश्च सह माता वरस्य वा । घटद्वयं स्वयं धृत्वा वाधैर्गच्छे जलाशयम् ॥ ६० ॥ फलगन्धाक्षतैः पुष्पैः सम्पूज्य जलदेवताः । घटान् भृत्वा जलैधृत्वा मूनि गच्छेनिजालयम् ॥ ६१ ॥ तथाऽऽनीतमृत्तिकायां वपेदीजानि मङ्गलैः। घटं संस्थाप्य वेधग्रे शुभद्रव्यैः समर्चयेत् ॥ ६२॥ वेद्यां गृहाधिदेवं संस्थाप्य दीपं प्रज्वालयेत् । साश्मानं वर्तुलं न्यस्येत्तत्पुरस्तन्तुभिर्वृताम् ॥ ६३ ॥ गुडजीरकसामुद्रहरिद्राक्षतपुञ्जकान् ।
पृथक्पञ्च तथा कन्यागृहेऽप्येष विधिर्भवेत् ॥ ६४ ॥ ___ विवाह-दिनके पहले दिन गृहस्थाचार्य स्नान कर और स्वच्छ धुले हुए कपड़े पहनकर पुरोहितजीके साथ गृहयज्ञ करे । उसी दिन प्रातःकाल वरको हल्दी आदिका उबटन लगाकर और स्नान कराकर वस्त्र-आभूषणोंसे भूषित करे । वरकी माता सौभाग्यवती स्त्रियोंके साथ दो कला अपने हाथमें लेकर जलाशयपर जावे । वहां पर फल, गंध, अक्षत और पुष्पोंसे जलदेवताको पूजा कर दोनों कलशोंको पानीसे भरे और अंकुरारोपणके लिए मिट्टी खोदे। दोनों कलशोंको सिरपर रखकर और मिट्टीको हाथमें लेकर अपने घर आवे । उस मिट्टीमें बीज बोवे और एक कलशका पानी उसमें गेरे । दूसरे कलश को वेदीके अग्रभागमें रखकर उसकी शुभ मंगलद्रब्योरे पूजा करे । वेदीमें कुलदेवताकी स्थापना कर दीपक जोवे । एक पत्थरकी चौकी