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त्रैवर्णिकाचार।
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ऊपर समदिनों में वधू-प्रवेश प्रशस्त बताया है। वे सम दिन कौन कौनसे हैं यह इस श्लोकद्वारा बताते हैं-सम दिनोंमें विवाह दिनसे लेकर चौथा, छठा, आठवां और दशवां दिन वधूके प्रथमा प्रवेशके लिए शुभ हैं, सम्पत्तिशाली हैं और सब मनोरथोंको पूर्ण करनेवाले हैं। महीनोंमें दूसरा, चौथा, छठा, आठवां और दशवां शुभ हैं। पांचवां महीना भी आयुप्रद है। तथा वर्षों में दूसरा, चौथा, छठा और आठवां अशुभ हैं ॥ १८१ ॥
देवोत्थापन। समे च दिवसे कुर्याद्देवतोत्थापनं बुधः ।
षष्ठे च विषमे नेष्टं त्यक्त्वा पञ्चमसप्तमौ ॥ १८२ ।। समदिनोंमें देव उठावे । परंतु समदिनोंमें छठा दिन प्रशस्त नहीं है । तथा पांचवें और सातवें दिनको छोड़कर शेष विषम दिन भी श्रेष्ठ नहीं हैं ॥ १८२ ॥
प्रतिष्ठादिनमारभ्य षोडशाहाच्च मध्यतः ।
मण्डपोद्वासनं कुर्यादुद्वाहे चेतेशम् (2) ॥ १८३ ॥ प्रतिष्ठादिनसे लेकर सोलह दिनके पहले पहले मंडप उठा देना चाहिए । तथा विवाहमें भी विवाहदिनसे लेकर सोलह दिनके पहले पहले ही उठा देना चाहिए ॥ १८३ ॥
विवाहालथमे पौषे त्वाषाढे चाधिमासके।
न च भतुगृहे वासश्चेत्रे तातगृहे तथा ॥ १८४ ॥ __ वधूको विवाहके अनंतर पहले पूषमें, पहले अषाढमें और अधिक मासमें पतिके घरमें निवास नहीं करना चाहिये तथा प्रथम चैत्रमें पिताके घर भी नहीं रहना चाहिए ॥ १८४ ॥
लग्न प्रतिघात । कृते वाग्भिश्च सम्बन्धे पश्चान्मृत्युश्च गोत्रिणाम् ।
तदा न मङ्गलं कार्य नारीवैधव्यदं ध्रुवम् ॥ १८५॥ वाग्दान हो चुकनेके बाद, यदि अपने किसी गोत्रजकी मृत्यु हो जाय तो आगे कहे जाने. वाले समयके पहले पहले विवाह नहीं करना चाहिए । क्योंकि उस समयके पहले विवाह करनेसे कन्या विधवा हो जाती है। भावार्थ-यद्यपि श्लोकमें सामान्य गोत्रजका ग्रहण है तो भी वर और . वधकी तीसरी-चौथी पीढ़ीतकके मनुष्यका ग्रहण करना चाहिए ॥ १८५ ॥
वरवध्वोः पिता माता पितृव्यश्च सहोदरः ।
एतेषां मरणे मध्ये विवादः क्रियते न हि ॥ १८६ ॥ वर और वधूके माता, पिता, चाचा और सहोदर भाई इनमेंसे किसीके मी मरजानेपर नीचे लिखे समयके पहले पहले विवाह न करे ॥ १८६ ॥...
पितुमातुश्च पल्याश्च वर्षमध तदर्धकम् । सनोभातुश्च तस्यार्धमन्येषां माससम्मतम् ॥ १८७ ॥