________________
३४८
सोमसेनभट्टारकविरचित । हिंसा, झूठ, चौरी, मैथुन और परिग्रहसे विरक्त होना व्रत हैं। ये व्रत पांच हैं, जो साक्षात् मोक्ष सुखकी प्राप्तिके कारण हैं ॥ २३ ॥
. पांच समितियोंके नाम । ईर्याभाषैषणादाननिक्षेपमलमोचनाः ।.
पञ्च समितयः प्रोक्ता व्रतानां मलशोधिकाः॥ २४ ॥ ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदाननिक्षेपसमिति और उत्सर्गसमिति-इस तरह समिति पांच प्रकारकी कही गई है, जो व्रतोंमें लगे हुए दोषोंको दूर करनेवाली है अर्थात् व्रतोंका रक्षण करनेवाली हैं ॥ २४ ॥
पांचों समितियों का जुदा जुदा लक्षण । युगान्तरदृष्टितोऽग्रे गच्छेदीर्यापथे प्रभुः। भाषा विचाये वक्तव्या वस्तु ग्राह्यं निरीक्ष्य च ॥ २५ ॥ प्रासुका भुज्यते भुक्तिर्निर्जन्तौ मुच्यते मलः।
समितयश्च पञ्चैता यतीनां व्रतशुद्धये ॥२६॥ सामनेकी चार हाथ जमीनको देखकर चलनेको ईर्यासमिति, विचारकर हित-मित बोलनेको भाषासमिति, देख-शोधकर वस्तुके रखने और उठानेको आदान-निक्षेपसमिति, प्रासुक आहार ग्रहण करनेको भिक्षा या एषणासमिति और जीव-जन्तु-रहित स्थानमें मल-मूत्र करनेको उत्सर्गसमिति कहते हैं। ये पांचों समितियां मुनियोंके व्रतोंको शुद्ध करनेके लिए हैं ॥ २५-२६ ॥
गुप्ति और तपोंके भेद । यत्नेन परिरक्षेत मनोवाक्कायगुप्तयः । द्वादशधा तपः मोक्तं कर्मशत्रुविनाशकम् ॥ २७ ॥ अनशनावमोदर्य तृतीयं वस्तुसंख्यकम् । रसत्यागं पृथक्शय्यासनं भवति पञ्चमम् ॥ २८ ॥ कायक्लेशं भवेत्षष्ठं षोढा बाह्यतपः स्मृतम् । विनयः प्रायश्चित्ताख्यं वैयाकृत्यं तृतीयकम् ॥ २९ ॥ कायोत्सर्ग तथा ध्यानं षष्ठं स्वाध्यायनामकम् ।
अभ्यन्तरमिति ज्ञेयमेवं द्वादशधा तपः ॥ ३० ॥ मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति-इस तरह गुप्तिके तीन भेद हैं। मुनियों को इन तीन गुप्तियोंका यत्नपूर्वक पालन करना चाहिए । तप बारह प्रकारका है, जो कर्मरूपी शत्रुओंको जड़मूलसे नष्ट करनेवाला है । इसके दो भेद हैं-एक बाह्य तप और दूसरा आभ्यन्तर तप । पहला अनशन, दूसरा अवमोदर्य, तीसरा व्रतपरिसख्यान, चौथा रसत्याग, पांचवां विविक्तशय्यासन भौर छठा कायक्लेश-इस तरह बाह्म तप छह प्रकारका है । विनय, प्रायश्चित्त, वैयावृत्य, कायोत्सर्ग, ध्यान और स्वाध्याय-ऐसे । छह प्रकारका आभ्यन्तर तप है । दोनों मिलकर बारह प्रकारके हैं ।। २७-३०॥