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.. वर्णिकाचार । ..
वया सह तद्धालस्तु यष्टः स्नानेनः शुद्ध्यति ।।
तां स्पृशन् स्तनपायी वा मोक्षणेनैव शुद्ध्यति ॥ ३८॥ रजस्वला स्त्रीके साथ रहनेवाला उसका सोलह वर्ष तकका बालक स्नान करनेसे शुद्ध होता है परंतु स्तन-पान करनेवाला मंत्रित जलके छींटे डालनेसे ही शुद्ध हो जाता है ॥ ३८ ॥ .. .. .
तद्भुक्तपात्रे भुजानोऽनमथाबादसंस्कृते । ...
उपवासद्वयं कुर्यात्सचेलस्नानपूकम् ॥ ३९ ॥ रजस्वला स्त्री जिस वर्तनमें भोजन करे उस वर्तनको आंचमें अंगाये (पर्म किये) विना उसमें यदि कोई भोजन करले तो अपने वदनपरके सब कपड़े धोवे और स्नान तथा दो उपवास करे ॥३९॥
यदि स्पृशति तत्पात्रं तद्वस्त्रं तत्पदेशकम् ।
तदा स्नात्वा जपेदष्टशतकृत्वोऽपराजितम् ॥ ४० ॥ जो कोई भी रजस्वलाका पात्र, उसका वस्त्र तथा उसके रहने का स्थान छू ले तो वह उसी वक्त स्नान कर एक सौ आठ वार णमोकार मंत्र जपे ॥ ४० ॥
अनुक्तं यद्यदत्रेव तज्ज्ञेयं लोकवर्तनात् ।
मूतकं प्रेतकाशौचं मिश्रं वाथ निरूप्यते ॥ ४१॥ रजस्वलाके सम्बंध जो कुछ न कहा गया हो उसे लोकव्यवहारसे जान लेना । अब जननाशौच, मरणाशौच और मिश्र-अशौचका निरूपण करते हैं ॥ ४१॥ . . . .
जातकं मृतकं चेति सूतकं द्विविध स्मृतम् ।..
सावः पातः प्रमूतिश्च त्रिविध जातकस्य च ॥४२॥ . सूतक दो तरहका होता है जातक और मृतक । जातकके तीन भेद हैं स्राव, पत और प्रसूति ॥ ४२ ॥
मासत्रये चतुर्थे च गर्भस्य स्राव उच्यते ।
पातः स्यात्पञ्चमे षष्ठे प्रमूतिः सप्तमादिषु ॥ ४३ ॥ गर्भाधानके अनन्तर यदि तीसरे और चौथे महीनेमें वह गर्भ स्त्रीके पेटसे च्युत होकर बाहर आजाय तो उसे स्राव कहते हैं, पांचवें और छठे मासमें यह कार्य हो तो उसे पांत कहते हैं, तथा सातवें आदि महीनोंमें हो तो प्रसूति कहते हैं ॥ ४३ ॥
गर्भस्रावका सतक। .. माससंख्यादिनं मातुः स्रावे सूतकमिष्यते ।
स्नानेनैव तु शुद्ध्यन्ति सपिंडाश्चैव वै पिता ॥४४॥.. नावमें जितने महीनेका स्राव हो उतने दिन तकका सतक माताके लिए कहा गया है । तथा अन्य सपिंड-गोत्रके बंधुओं तथा पिताके लिए कोई सूतक नहीं है, वे सिर्फ स्नान करें ॥ ४४ ॥
- गर्भपातका सूतक । पाते मातुर्यथामासं तावदेव दिनं भवेत् । सूतकं तु सपिण्डानां पितुश्चैकदिनं भवेत् ॥ ४५ ॥