Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Somsen Bhattarak, Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 393
________________ ३५२ सोमसेनभट्टारकविरचित । मतान्तरम् - दूसरे अन्तराय । विण्मूत्राजिनरक्तमांसमंदिरापूयास्थिवान्तीक्षणादस्पृश्यान्त्यजभाषणश्रवणतास्वग्रामदाहेक्षणात् । प्रत्याख्याननिषेवणात्परिहरेद्रव्यो व्रती भोजने - प्याहारं मृतजन्तुकेशकलितं जैनागमोक्तक्रमम् ।। ५६ ।। विष्ठा, मूत्र, चमड़ा, खून, मांस, मदिरा, पीप, हड्डी और वमनके देखनेपर, अछूत जातिके मनुष्य की आवाज सुनलेने पर अपने ग्राम में आग लग जानेपर, त्यक्त वस्तुके खा लेनेपर और भोजन में मरे हुए प्राणी और केश निकल आनेपर, व्रती पुरुष आहार छोड़ दे - इस तरह की विधि जैनागम में बताई है ॥ ५६ ॥ अन्यत् —–मूलाचारोक्त अन्तराय । कागा मेज्जा छद्दी रोहण रुहिरं च अंसुपादं च । जहू हेठा परिसं जण्हूवरिवदिक्कमो चेव ॥ ५७ ॥ चरते हुए या खड़े हुए पर जो कौआ, बगुला, श्येन आदि जानवर वीठ कर देते हैं उसे काकान्तकहते हैं । विष्टा, मूत्र आदि अपवित्र चीजोंकर पैरोंसे लिपट जाना अमेध्यान्तराय है ! यदि अपनेको वमन होजाय तो छर्दि नामका अन्तराय है । यदि कोई अपनेको रोक ले तो रोधन नामका अन्ऩराय है। यदि अपने या परायेके खून दीख पड़े तो रुधिर नामका अन्तराय है । च शब्द से पीप आदिको भी समझना चाहिए । अपनेको या अपने समीपवर्ती दूसरेको कष्टके मारे आँसू आजांय तो वह अश्रुपात नामका अन्तराय है । जंघाके नीचे स्पर्श होना जान्वधो नामका अन्तराय है । जंघा के ऊपर स्पर्श होना जानुव्यतिक्रम नामका अन्तराय है । तथा — ॥ ५७ ॥ णाहि अहोणिग्गमणं पच्चक्खिदसेवणा य जंतुवहो । कागादिपिंडहरणं पाणीदो पिंडपडणं च ॥ ५८ ॥ नाभिके नीचे तक सिर करके यदि गृहस्थके घर के दरवाजेमें होकर घरमें जाना पड़े तो नाभ्यत्रो - निर्गमन नामका अन्तराय हैं । त्यागकी हुई वस्तु यदि सेवन- खाने में आजाय तो प्रत्याख्यातसेवन नामका अन्तराय है । अपने या दूसरेके सामने यदि जीववध किया जा रहा हो तो जीववध नामका अन्तराय है। कौआ आदि जानवर आहारको चौंचसे उठाकर लेजांय तो कागादिपिंडहरण नामका अन्तराय है । भोजन करते हुएके हाथमेंसे यदि ग्रास गिर पड़े तो पिंडपतन नामका अन्तराय है । तथा — ॥ ५८ ॥ पाणीये जंतुवहे मंसादिदंसणे य उवसग्गे । पादतैरपंचिंदिय संपादो भायणाणं च ।। ५९ ।। भोजन करते हुएके हाथमें आकर यदि कोई जीव मर जाय तो पाणिजन्तुवध नामका अन्तराय है । यदि मरे हुए पंचेन्द्रिय जीवका शरीर-मांस आदि देखनेमें आजाय तो मांसादि दर्शन १" पांतरम्मि जीवो " ऐसा भी पाठ हैं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440