Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Somsen Bhattarak, Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

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Page 356
________________ त्रैवर्णिकाचार। ३१५ वाग्दानके बाद और विवाह समय होनेवाली वरणविधिसे पहले कन्याकी प्रदानविधि होती है, जो वरके पिताकी ओरसे की जाती है। कलश और आचार्यकी पूजा कर कन्याको वस्त्र-अलं. कार आदिसे विभूषित करे, उसे उत्तम कीमती रेशमी कपड़े, कानोंमें पहनने के दागीने, कंठ में पहननेके दागीने, हाथ पैर शिर आदि स्थानोंमें पहनने योग्य दागीने देवे । अनन्तर ब्राह्मणों के द्वारा दिये हुए आशीर्वादको ग्रहण कर उन्हें (ब्राह्मणोंको ) फल वगैरह देवे। भावार्थ-सगाईके बाद लड़कीके लिए वरके पिताकी ओरसे गहना देनेको प्रदान-विधि कहते हैं ।। ४९-५० ॥ अथ वरणं-वरणविधि । प्रार्थयेद्गुणसम्पूर्णान् मधुपर्केण पूजितः । मदर्थ वृणीध्वं कन्यामिति दत्वा च दक्षिणाम् ।। ५१ ॥ गोत्रोद्भवस्य गोत्रस्य सम्बन्धस्यामुकस्य च । नप्त्रे पौत्राय पुत्राय ह्यमुकाय वराय वै ।। ५२ ॥ कन्याया अपि गोत्रस्य यथापूर्ववदुच्चरेत् । नप्तीमथ च पौत्रीं च पुत्री कन्यां यथाविधि॥ ५३॥ कन्यासमीपमागत्य ब्राह्मणैः सह वै पिता। इत्युक्त्वा भो द्विजा यूयं वृणीध्वं कन्यकामिमाम् ॥ ५४ ॥ प्रत्यूचुः सज्जनाः सव वयं चैनां वृणीमहे । सुप्रयुक्तेति सूक्तं वै जपेयुः सज्जनास्ततः॥ ५५॥ मधुपर्कद्वारा पूजा किया गया वर, व्रती सदाचारी गुणवान् ब्राह्मणोंकी प्रदक्षिणा देकर, "मदर्थ कन्यां वृणीध्वं " अर्थात् “ मेरे लिए आप सब लोग मिलकर कन्या स्वीकार करो" ऐसी प्रार्थना करे । बाद कन्याका पिता कन्याके समीप आकर ब्राह्मणों के साथ इस प्रकार गोत्रोच्चारण करे कि मैं, अमुक गोत्रमें उत्पन्न हुए अमुकका प्रपोता, अमुकका पोता, अमुकका पुत्र, अमुक नामवाले वरके लिए अमुककी प्रपोती, अमुककी पोती, अमुककी लड़की, अमुक नामवाली कन्याको देता हूं। हे ब्राह्मणो! आप लोग स्वीकार करो। इसके बदले में वे सब ब्राह्मण लोग कहें कि हम सब इस कन्याको स्वीकार करते हैं। बाद सारे सजन “सुप्रयुक्ता" इत्यादि सुभाषितोंको पढें ॥ ५१-५५ ॥ पाणिपीडन-पाणि-पीड़न-विधि । धर्मे चार्थे च कामे च युक्तेति चरिता त्वया । इयं गृह्णाति पाणिभ्यां पाणीति पाणिपीडनम् ॥ ५६ ॥ धर्म, अर्थ और काम, इन तीन पुरुषार्थोसे युक्त तेरेद्वारा वरण की हुई यह कन्या तेरे हाथोंको अपने हाथोंसे पकड़ती है । इस तरह पाणिपीडन-विधि होती है । भावार्थ-वर-कन्याका हथलेवा जोड़ने (परस्पर हाथ मिलाने ) को पाणिपीडन कहते हैं ॥ ५६ ॥ ... - १ इन अमुक शब्दोंकी जगह वर-कन्याके प्रपितामह आदिका नाम जोड़ लेना चाहिए ।

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