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त्रैवर्णिकाचार । ..
विश्राणनं वनीपकानामित्येवं विधातुं प्रतिज्ञायाः सूत्रकंकणं सूत्रव्यपदेशभाक् रजनीसूत्रं मिथो मणिवन्धे प्रणह्यते । कंकणसूत्रबन्धनमन्त्रः ।
'ॐ जाया पत्यो ' इत्यादि मंत्र पढ़कर कंकणसूत्र बांधे । वर्धापन विधि |
ततश्च कुलवनिता दम्पतीपरस्परहस्त पूर्णाक्षतपुअं मस्तके त्रिवारं क्षेपयेत् । मन्त्राः - ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनाय स्वाहा । ॐ वहीं सम्यग्ज्ञानाय स्वाहा । ॐ =हीं सम्यक्चारित्राय स्वाहा । इति वर्धापयेत् ।
जब कन्या के पिता की ओरसे कन्यादान हो चुके, उसके बाद एक सुवासिनी स्त्री आवे । वह वर और कन्याके हाथमें अक्षत द्वेकर परस्पर एक दूसरेके सिरपर तीन वार क्षेपण करावे | <<' ॐ ह्रीं " इत्यादि मंत्र हैं । इनको पढ़ते हुए वर्धापन करावे ।
सायदुग्वार्द्रपाणिभ्यां वरस्तत्कन्यकाञ्जलिम् ।
द्विरुन्मृज्य ततस्तत्र द्विः क्षित्वा धवलाक्षतान् ॥ १२५ ॥ साक्षतं स्वाञ्जलिं तत्र कन्या पित्रा निषेचितम् । शान्त्याद्याशीर्भिरेवं तु क्षिपेत्तन्मूर्ध्नि साप्यथ ॥ मूर्ध्नि तण्डुल निक्षेपः स्याद्रत्नत्रयमन्त्रतः । कन्याऽप्येवं द्विरुन्मृज्य मूर्ध्नि क्षेपान्तमाचरेत् ॥
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प्रथम वर, अपने दोनों हाथोंसे कन्याकी अंजलिमें दो वार घी और दूध लगाकर दो ही वार अक्षत क्षेपण करे । अनंतर कन्याका पिता वरके हाथमें घी और दूध लगाकर अक्षत क्षेपण करे । अनन्तर वर अंजलिके उन अक्षतोंको शान्ति-मंत्र, आशीर्वाद-मंत्र आदिमंत्रोंको बोलता हुआ रत्नत्रयमंत्रद्वारा कन्याके सिरपर क्षेपण करे। वह कन्या भी वरके द्वारा दिये गये अपनी अंजलिके अक्षतोंको वरके सिरपर क्षेपण करे। इस तरह दोनों परस्पर में तीन तीन बार करें। अनन्तर इसी तरह कन्या भी वरकी अंजलिमें दो वार घी और दूध लगानेको आदि लेकर सिरपर अक्षत निक्षेपण तककी क्रिया करे | भावार्थ — जैसे वर अपने हाथोंसे कन्याकी अंजलि में दो वार घी और दूध लगाकर अक्षत छोड़ता है, अनन्तर कन्या पिताद्वारा अपनी अंजलि में दिये हुए अक्षतोंको शान्ति आदि पाठोंका उच्चारण करता हुआ कन्याके सिरपर क्षेपण करता है, उसी तरह कन्या भी अपने हाथोंसे दो वार वरकी अंजलि में घी और दूध लगाकर दो ही वार अक्षत क्षेपण करे । और अपने पिताद्वारा अपनी अंजलि में दो वार घी और दूध लगाकर क्षेपण किये गये अक्षतोंको शान्ति आदि मंत्रोंका उच्चारण करती हुई रत्नत्रयमंत्रद्वारा वरके सिरपर तीन वार क्षेपण करे । वर भी जो अक्षत कन्या उसकी अंजली में क्षेपण करती हैं उनको कन्याके सिरपर तीन वार क्षेपण करे । इस प्रकार वर्धापन क्रिया करे || १२५-२२७ ॥
विवाहविधि और होम विधि |
द्धवखान्वितौ तौ च वीक्ष्य पूर्ण घटद्वयम् ।
कुण्डात्प्रत्यग्दिश्याग त्यो पविशेतां समासने ।। १२८ ॥