Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Somsen Bhattarak, Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 366
________________ त्रैवर्णिकाचार | एतद्गोत्रे प्रजातस्यैवैतन्नाम्नः प्रपौत्रकः । अस्य पौत्रोऽस्य पुत्रञ्चाप्येतदाख्योऽहमित्यथ ॥ ११६ ॥ एतद्गोत्रे प्रजातस्यैवैतनाम्नः प्रपौत्रिकाम् । पौत्रीमस्यास्य पुत्रीमप्येतदाख्यामिमां वृणे ॥ ११७ ॥ इति ब्रूयाच्चतुर्थी च प्रपौत्रादिपदे स्वके । प्रयोज्य वदेत्कन्यावरणे समये वरः ॥ ११८ ॥ स्वपक्षं पूर्वमुक्त्वैवमपरं च वदन्वदेत् । त्वं वृणीष्वेति वा तुभ्यं प्रयच्छामीति मातुलम् ॥ ११९ ॥ दक्षिणं पाणिमेतस्याः ससुवर्णक्षतोदकम् । पित्रा समन्त्रकं दत्तं गृह्णीयात्स प्रयत्नतः ॥ १२० ॥ धर्मेण पालयेत्यादि कन्यापितरि वक्तरि । ३२५ धर्मेण न कामेन पालयामीत्यसौ वदेत् ॥ १२१ ॥ कन्यावरणके समय वर, इस गोत्रमें उत्पन्न हुआ, इसका प्रपोता, इसका पोता, इसका पुत्र इस नामवाला मैं, इस गोत्रमें उत्पन्न हुई, इसकी प्रपोती, इसकी पोती, इसकी पुत्री, इस नामवाली इस कन्याको वरता हूं, इस प्रकार अपने और कन्याके प्रपौत्रादि चारों पदको जोड़कर इस चतुर्थीचारों बातोंका उच्चारण करे | बाद कन्याका पिता 'त्वं वृणीष्व' अर्थात् तुम वरो अथवा 'तुभ्यं प्रयच्छामि' अर्थात तुम्हें यह कन्या देता हूं, इस प्रकार कहें। जब कन्याका पिता ऐसी प्रार्थना करे तब वरके मामा वगैरह वरपक्षके लोग तीन वार इस तरह कहें कि श्रीवत्स गोत्रमें उत्पन्न हुए इसके प्रपोते, इसके पोते, इसके लड़के, देवदत्त नामके इस कुमारके लिए हम सब आपकी कन्या वरते हैं । वर तरफके लोग जब ऐसा कह चुकें तब कन्यापक्षके लोग 'वृणीध्वं वृणीध्वं वृणीध्वं' अर्थात् वरो, वरो, वरो, इस तरह तीन वार कहें । इसके बाद कन्यापक्ष के लोग काश्यप गोत्र में उत्पन्न हुई, इसकी प्रपोती, इसकी पोती, इसकी लड़की, देवदत्ता नामकी इस कन्याको आप वरो, इस तरह तीन वार कहें । इसके बदलेमें वरपक्ष के लोग 'वृणीमहे, वृणीमहे, वृणीमहे,' अर्थात् वरते है, वरते हैं, वरते हैं, इस तरह तीन वार कहें । पश्चात् कन्याका पिता आगे लिखे कन्याप्रदान मंत्रको बोलकर सुवर्ण अक्षत और गंधोद की धारा छोड़ता हुआ कन्याका दाहिना हाथ वरके हाथमें सोंपे। वह वर भी यत्नपूर्वक उसके हाथको अपने हाथसे पकड़े | इसके बाद कन्याका पिता धर्म, अर्थ और कामके साथ साथ तुम इस कन्याका पालन करना ऐसा कहे । इसके बदले में वर धर्म, अर्थ और कामके साथ साथ मैं इस कन्याका पालन करूंगा, ऐसा कहे ।। ११६-१२१ ॥ कन्यावरण मंत्र | ॐ एकेन प्रकाश्येन पूर्वेण पुरुषेण श्रीवत्सेन ऋषिणा प्रतीते श्रीवत्सगोत्रे प्रजाताय तस्य प्रपौत्राय तस्य पौत्राय तस्य पुत्राय देवदत्तनामधेयाय अस्मै कुमाराय भवतः कन्यां वृणीमहे इति वरसम्बन्धिभिस्त्रिः पार्थनीयम् । तदा कन्यासम्बन्धिभिर्वृणीध्वमिति त्रिः प्रतिवक्तव्यम् ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440