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सोमसेनभट्टारकविरचित___ॐ एकेन " इत्यादि मंत्रको वरपक्षके लोग तीन वार बोलें । उसके बदले में कन्यापक्षके लोग 'वृणीध्वं वृणीध्व वृणीध्वं ' इस तरह तीन वार कहें।
ततः-ॐ एकेन प्रकाशेन पूर्वेण पुरुषेण काश्यपेन ऋषिणा प्रतीते काश्यपगोत्रे मनातां तस्य प्रपौत्रीं तस्य पौत्रीं तस्य पुत्री देवदत्तानामधेयां इमां कन्यां वृणीध्वं इति कन्यासम्बन्धिभित्रिर्वक्तव्यम्। तदावरसम्बन्धिभिवृणीमहे इति प्रतिवक्तव्यम् । इति कन्यावर मंत्रः। ____इसके बाद 'ॐ एकेन प्रकाश्येन ' इत्यादि मंत्रको कन्या-पक्षके लोग तीन वार उच्चारण करें । इसके उत्तरमें वरपक्षके मनुष्य 'वृणीमहे वृणीमहे वृणीमहे' इसतरह तीन वार बोलें।
कन्यादान मंत्र ।-- ततश्च कन्यापिता-ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते वर्द्धमानाय श्रीवलायुरारोग्यसन्तानाभिवर्धनं भवतु । इमां कन्यामस्मै कुमाराय ददामि इवी इवीं क्ष्वी हं सः स्वाहा । इत्यनेन गन्धोदकधारापूर्वकं कन्यामदानं कुर्यात् । ___इसके बाद कन्याका पिता — ॐ नमोऽईते ' इत्यादि मंत्र पढ़कर गन्धोदककी धार छोड़ता हुआ कन्या प्रदान करे।
___ अथ कंकणम्-कंकण-बंध ।. त्रिस्त्रिरावेष्टितं सूत्रं नाभिदन्नेऽनयोः पृथक् । ऊध्वं चाधः समादाय कृत्वा पञ्चगुणं ततः ॥ १२२ ॥ हरिद्राकल्कमालिप्य वलित्वा तत्करेऽपयेत् । . मदनफळमन्यं वा मणिं सर्वेण योजयेत् ॥ १२३ ॥ वायैपन्त्रैः समायुक्तं सौवर्ण राजतं पिता।
ताभ्यां तो कंकणं हस्ते बध्नीयातां मिथः क्रमात् ॥ १२४ ॥ वधू और वरके नाभिप्रदेशके पास दोनोंके चारों ओर सतके तीन तीन धागेके दो फेर करे । नीचेकी तीन,धागेकी लरका फेर ऊपरको और ऊपरकी तीन धागेकी लरका फेर नीचेको करे । जो फेर नीचेकी ओर करे उसे पैरोंमें होकर और जो उपरकी ओर करे उसे मस्तकपर होकर निकाल ले पश्चात् उसे पचंगुणा करे । उसे हल्दीमें रंगकर और बटकर तथा उसमें मदनफल या सोने चांदीकी मुद्रिका बांधकर वधू-वरके हाथमें सौंप देवे । बाद मंत्रोच्चारण पूर्वक गाजे. वाजेसहित वधू वरके हाथमें और वर वधूके हाथमें क्रमसे उस कंकणको बांधे । १२२-१२४ ।।
अथ मन्त्रः-कंकण-बंधन मंत्र । - ॐ जायापत्योरेतयोर्गृहीतपाण्योरेतस्मात्परमा चतुर्थदिवसादाहोस्विदासप्तमादिज्यापरमस्य पुरुषस्य गुरुणामुपास्तिर्देवतानामर्थेनाऽग्निहोत्रं सत्कारोऽभ्यागतानां ____१ पचगुणीकी हुई एक एक लरमें सूतके धागे छह होते हैं; एवं पांच लरोंमें तीस धागे हो जाते हैं।