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त्रैवर्णिकाचार।
और पत्थरके चारों तरफ सूत लपेटकर वेदीके अग्रभागमें रक्खे । उस पर गुड, जीरा, नमक, हल्दी और अक्षत, इनके पृथक् पृथक् पांच पुंज रक्खे । यह सब अंकुरारोपण-विधि है । इसी तरहकी विधि कन्याके घर भी की जाय ॥ ५८-६४ ।।
__ उस दिन वरका कर्तव्य । वरः स्नानादियुक् पश्चात्स्वस्तिवाचनपूर्वकम् ।
होमं विधाय भुञ्जीत पित्राचार्यादिसंयुतः ॥ ६५ ॥ वर स्नान आदि कर स्वस्तिवाचन-पूर्वक गृहयज्ञ करे । अनन्तर पिता आचार्य आदिको साथ लेकर भोजन-पान करे ॥ ६५ ॥
वरका वधूक घरपर गमन । अपरेधुः कृतस्नानो धौतवस्त्रधरो वरः। स्वलंकृतः सितच्छत्रपदातिजातिबान्धवैः ॥ ६६ ॥ वृतो वधगृहं गच्छेद्वाधवैभवर्जितः।। नीयमानो नरैः प्रीत्या तत्रस्थैः कन्यकाश्रितः ॥ ६७ ॥ तण्डुलादिभिराकीर्णे चन्द्रोफ्कादिभूषिते । पवित्रे श्वशुरावासे सज्जनैर्निवसेद्वरः ॥ ६८। गमागमक्रिया सर्वा विधेया वनितादिभिः ।
देशकुलानुसारेण वृद्धस्त्रीभिर्निरूपिता ॥ ६९ ॥ दूसरे दिन-विवाहके रोज वर स्नान कर, धोये हुए स्वच्छ कपड़े और आभूषण पहनकर सिरपर सफेद छतरी लगाकर, नौकरों और जातीय बांधवोंको साथ लेकर, गाजे-बाजेके ठाठसहित वधू घरपर जावे । कन्या-पक्षके सजन प्रीतिपूर्वक वरको बधाव । अनंतर वर तंदुल आदिस आकीर्ण, चंद्रोपक (चंदोवा) आदिसे सजे हुए श्वसुरके पवित्र घरपर साथवाले सजनोंके साथ बैठ जाय । अनंतर देश-कालके अनुसार बुढ़ी बड़ेरी स्त्रियां जैसा बतावें उस तरह लाने ले जाने आदिकी सारी क्रियाओंको सब स्त्रियां मिलकर संपादन करें ।। ६६-६९ ॥
विवाहभेदाः-विवाहके आठ भेद । ब्राह्मो देवस्तथा चाषेः प्राजापत्यस्तथाऽऽसुरः।
गान्धर्वो राक्षसश्चैव पैशाचश्वाष्टमोऽधमः ॥ ७० ॥ ब्राह्मविवाह, दैवविवाह, आर्षविवाह और प्राजापत्यविवाह, ये चार धर्मविवाह हैं। और असुर विवाह, गांधर्वविवाह, राक्षसविवाह और पैशाचविवाह, ये चार अधर्म्यविवाह हैं । एवं क्विाहके आठ भेद हैं ॥ ७० ॥
ब्राह्म-विवाह । आछाच चाहयित्वा च श्रुतशीलवते स्वयम् । आहूय दानं कन्याया ब्राह्मो धर्मः प्रकीर्तितः ॥ ७१ ॥.