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सोमसेनभट्टारकविरचित- इसके बाद फिर आचमन कर वह वर कन्याके पिता द्वारा दिये हुए तांबूल, चंदन, अक्षत, यज्ञोपवीत और वस्त्र स्वीकार करे ॥ ९३ ॥
ॐ, भूयात्मुपद्मनिधिसम्भवसारवस्त्रं, भूयाच कल्पकुजकल्पितदिव्यवस्खम् ॥ भूयात्सुरेश्वरसमर्पितसारवस्त्रं, भूयान्मयार्पितमिदं च सुखाय वस्त्रम् ॥ ९४ ॥ यह वस्त्र देनेका मंत्र है । इसे पढ़कर वस्त्र प्रदान करे ।। ९४ ॥
कन्याया मातुलस्तस्माद्वरं धृत्वा करेण वै ।
गृहस्याभ्यन्तरं प्राप्य (?) कन्यामप्यानयेत्ततः॥ ९५ ॥ कन्याका मामा वरको हाथ पकड़कर वेदीके पास लावे । अनन्तर कन्याको भी वहां लावे ॥९५॥
वेदिकाग्रे ततः कुर्यात्स्वस्तिकं स्थण्डिलान्वितम् ।
पूर्वापरदिशो रम्यं तण्डुलपुञ्जकद्वयम् ॥ ९६॥ वेदीके अग्रभागमें चौकोन चबूतरेका आकार बनाकर उसपर स्वस्तिक खेंचे । पूर्व दिशामें एक और पश्चिम दिशामें एक ऐसे दो चावलोंके पुंज रक्खे ॥ ९६ ॥
वेदी लक्षणम्-वेदीका लक्षण । विस्तारिता हस्तचतुष्टयेन, हस्तोच्छ्रितां मन्दिरवामभागे । स्तम्भश्चतुर्भिः कृतनिर्मितांगां, वेदी विवा प्रवदन्ति सन्तः ॥ ९७ ॥
विवाहमें चार हाथ लंबी, तथा चार ही हाथ चौड़ी और एक हाथ ऊंची एक वेदी घरके बाएं पसवाड़ बनवावे । उसके चारों कोनोंपर चार स्तंभ ( थांभ) खड़े करे ॥ ९७ ॥
अन्यमतं-दुसरा मत । कन्याहस्तैः पञ्चभिः सप्तभिवो, वेदी कुर्यात्कूर्मपृष्ठोन्नताणाम् । रम्ये हर्षे कारयेद्वामभागे, जायापत्योरशिषो वाचयित्वा ॥ ९८ ॥
वधु और वरको आशीर्वाद देकर, अपने रमणीय मकानके बाई ओग, कन्याके हाथसे पांच हाथ अथवा साथ हाथ लंबी चौडी तथा कच्छ की पीठकी तरह उठी हुई एक वेदी बनवावे ॥ ९ ॥
व्रतबन्धे वेदी- उपनयनके समयकी वेदीका स्वरूप। पाक्पश्चिमोर्ध्वग्दषद्कयुक्त मुदीच्ययाम्यान पदानि पञ्च । एवंविधा ज्यातिषरत्ननिर्मिता, बटोः शतायुभवतीह वेदिका ॥ ९९ ॥
उपनयन के समय पूर्व और पश्चिम दिशामें छह पैंड लंबी, दक्षिण और उत्तर तरफ पांच पेंड चौडी एक वेदी होना चाहिए । इस प्रकारकी ज्योतिषशास्त्रके अनुसार बनवाई हुई वेदी बालकको शतायु-दीर्घजीवी करती है ॥ ९९ ॥
अन्यमतं-दूसरा मत । आचार्यस्य पदैः षाभिः पञ्चभिर्वाऽथ सप्तभिः । विस्तृता चतुरस्रा च बटोर्वेदी करोन्नता ॥१०॥