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सोमसेनभट्टारकविरचित___ विद्वान् और सदाचारी वरको स्वयं बुलाकर उसको और कन्याको बहुमूल्य आभूषण पहना कर कन्या देनको ब्राह्मविवाह कहते हैं ।। ७१ ॥
दैव-विवाह। यज्ञे तु वितते सम्यक् जिनार्चाकर्म कुर्वते ।
अलंकृत्य सुतादानं दैवो धर्मः प्रचक्ष्यते ॥७२॥ जिन-पूजारूप महान अनुष्ठानका प्रारंभकर उसकी समाप्ति होनेपर उस जिनार्चा करानेवाले साधर्मीको वस्त्र-आभूषणोंसे विभूषित कर कन्या देनेको दैवविवाह कहते हैं ॥७२॥
. आर्ष-विवाह। एकं वैस्त्रयुगं द्वे वा वरादादाय धर्मतः।
कन्यामदानं विधिवदा! धर्मः स उच्यते ॥ ७३ ॥ ____ एक या दो जोड़ी वस्त्र वरसे कन्याको देने के लिए धर्मनिमित्त लेकर विधिपूर्वक कन्या देना आर्षविवाह है ॥ ७३ ॥
प्राजापत्य-विवाह । सहोभौ चरतां धर्ममिति तं चानुभाष्य तु ।
कन्यापदानमभ्यर्च्य प्राजापत्यो विधिः स्मृतः ॥ ७४ ॥ कन्या प्रदानके समय 'तुम दोनों साथ साथ सद्धर्मका आचरण करो' ऐसे वचन कहकर दोनोंको वस्त्राभूषणसे सुसजित कर कन्या देनेको प्राजापत्यविवाह कहते हैं ॥ ७४ ॥
आसुर-विवाह । ज्ञातिभ्यो द्रविणं दत्वा कन्यायै चैव शक्तितः।
कन्यादानं यत्क्रियते चासुरो धर्म उच्यते ॥ ७५ ।। कन्याके पिता आदिको कन्याके लिए यथाशक्ति धन देकर कन्या लेना सो आसुरविवाह
गान्धर्व-विवाह। स्वच्छयाऽन्योन्यसंयोगः कन्यायाश्च वरस्य च । गान्धर्वः स तु विज्ञेयो मैथुन्यः कामसम्भवः ॥ ७६ ॥
१ स ब्राह्मो विवाहो यत्र वरायालङ्कृत्य कन्या प्रदीयते । २ स दैवो विवाहो यत्र यज्ञार्थमत्विजः कन्याप्रदानमेव दक्षिणा।
३ 'वस्त्रयुगं' के स्थानमें 'गोमिथुनं ' भी पाठ है, जिसका अर्थ एक गाय और एक बैल होता है । वरसे लेकर कन्याको देना या कन्याके साथ साथ एक या दो गोमिथन देना. ये
न्याके साथ साथ एक या दो गोमिथुन देना, ये दोनों ही अर्थ स्वीकार किये गए हैं । तदुक्तं-गोमिथुनपुरःसरं कन्यादानादार्षः ।
४ विनियोगेन कन्याप्रदानात्प्राजापत्यः । त्वं भव अस्य महाभाग्यस्य सधर्मचारिणीति विनियोगः।
५. पणबंधेन कन्याप्रदानादासुरः ।