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सोमसेनभट्टारकविरचित
अनर्थदण्डके अतीचार। कन्दर्प कौत्कुच्यं मौखर्यमतिसाधनं पञ्च ।
असमीक्ष्य चाधिकरणं व्यतीतयोऽनर्थदण्डकृद्विरतेः ॥ ९९ ॥ हास्यमिश्रित चकारादि वचन बोलना, कायके द्वारा कुचेष्टा करना, वृथा बकवाद करना, बिना प्रयोजन भोगोपभोगकी सामग्री बढ़ाना, और बिना विचारे किसी कार्यको करना, ये पांच अनर्थ दंडविरति व्रतके अतीचार हैं । अनर्थदंडसे विरक्त पुरुषको इनका त्याग करना चाहिए ॥ ९९ ॥
भोगोपभोगपरिमाण व्रत । अक्षार्थानां परिसंख्यानं भोगोपभोगपरिमाणम् ।
अर्थवतामप्यवधी रागरतीनां तनूकृतये ॥ १० ॥ राग-भावोंको घटानेके लिए परिग्रहपरिमाण व्रतमें परिमाण किये हुए विषयों से भी प्रयोजनभूख पंचेंद्रियों के विषयोंका परिमाण करना भोगोपभोगपरिमाण व्रत है ।। १०० ॥
भोग और उपभोगका लक्षण । भुक्त्वा परिहातव्यो भोगो भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्यः।
उपभोगोऽशनवसनप्रभृतिः पञ्चेन्द्रियो विषयः ॥ १०१॥ भोजन, वस्त्र आदि पंचेन्द्रियसम्बंधी विषय, जो एक वार भोगकर त्याग देने योग्य हैं उन्हें भोग, और जो भोगकर फिर भोगनेमें आते हैं उन्हें उपभोग कहते हैं ॥ १०१ ॥
भोगोपभोगपरिमाण व्रतमें विशेष त्याग। त्रसहतिपरिहारार्थ क्षौद्र पिशितं प्रमादपरिहृतये।
मधं च वर्जनीयं जिनचरणौ शरणमुपयातैः ॥ १०२ ॥ जिन भगवानकी शरण ग्रहण करनेवाले पुरुषोंको त्रसजीवोंकी हिंसाका परिहार करनेके लिए मधु और मांसका तथा प्रमाद दूर करनेके लिए मद्यका त्याग करना चाहिए ।। १०२ ॥
अल्पफलबहुविधातान्मूलकमाणि शृङ्गबेराणि।
नवनीतनिम्बकुसुमं कैतकमित्येवमवहेयम् ॥ १०३ ॥ जिनके भक्षण करनेसे जिह्वा इन्द्रियको फल कम मिलता हो और जीवोंका घात अधिक होता हो ऐसे सचित्त अदरख, मूली, गाजर, तथा मक्खन, नीम और केतकीके फूल, इस तरहकी चीजोंका भी त्याग करना चाहिए । भावार्थ-मद्य, मांसादिकोका त्याग यद्यपि अष्ट मूल्यगुणोंके समय हो
का था, तथापि फिर यहां भोगोपभोग व्रतमें भी इनका त्याग कराया है। इसलिए यहां इनके त्यागसे अतिचारोंका त्याग समझना चाहिए । अथवा पुनः पुनः त्यागका जो कथन किया जाता है वह व्रतशुद्धि तथा त्याग करनेवालेको स्मृति बनी रहे इसलिए किया जाता है॥ १.३॥
पंच उंदुबर-त्यागका कारण। सूक्ष्माः स्थूलास्तथा जीवाः सन्त्युदुम्बरमध्यगाः। तन्निमित्तं जिनोद्दिष्टं पञ्चोदुम्बरवर्जनम् ॥ १०४॥