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त्रैवर्णिकाचार |
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आगेत्रे श्लोकमें कहे हुए सात गुण - सहित, शुद्ध भावोंसे कूटने, पीसने, चूल्हा सुलगाने, पनी भरने और बुहारी देनेके आरंभसे रहित महामुनियोंका नवधा भक्ति द्वारा आदर सत्कार करनाआहार देना दान कहा जाता है ॥ ११६ ॥
नौ पुण्य स्थापनमूचैःस्थानं पादोदकमर्चनं प्रणाम । वाक्कायहृदयैषणशुद्धय इति नवविधं पुण्यम् ॥
११७ ॥
आहार पानी शुद्ध है, ठहरिये - ठहरिये, इस तरह पड़गाहना, बैठनेको ऊंचा आसन देना, पैर प्रक्षालन करना, पूजा करना, नमस्कार करना, मन-वचन-कायकी शुद्धि रखना, और शुद्ध आहार देना, ये नौ पुण्य हैं। इन नौ पुण्यों-पूर्वक अतिथियों को आहार देना चाहिए ।। ११७ ॥ दाताके सात गुण ।
श्रद्धा भक्तिस्तुष्टिर्विज्ञानमलुब्धता क्षमा सत्वम् । सप्तगुणास्तं दातारं प्रशंसन्ति ।। ११८ ॥
जिस दातामें श्रद्धा, भक्ति, संतोष, विज्ञान, अलुब्धता, क्षमा और धैर्य, ये सात गुण हैं, वह दाता प्रशंसा के योग्य है ॥ ११८ ॥
ग्यारह प्रतिमा ! दंसणवयसमाइयपासहसचित्तराइभत्ते य ।
बंभारंभपरिग्गहअणुमणुमुद्दिह देशविरदेदे ॥ ११९ ॥
दर्शनप्रतिमा, व्रतप्रतिमा, सामायिक प्रतिमा, प्रोषधोपवास प्रतिमा, सचित्तत्याग प्रतिमा, रात्रिभक्त त्याग प्रतिमा, ब्रह्मचर्य प्रतिमा, आरंभत्याग प्रतिमा, परिग्रहत्याग प्रतिमा, अनुमतित्याग प्रतिमा, और उद्दिष्टत्याग प्रतिमा, ये ग्यारह प्रतिमाएं हैं, जो देशविरत - पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावकों के होती हैं ॥ ११९॥
दर्शन सामायिकमोषधोपवासकाः ।
प्रोक्ताः प्रागेव मोचेऽथ सचित्तव्रतलक्षणम् ॥ १२० ॥
दर्शन प्रतिमा, व्रत प्रतिमा, सामायिक प्रतिमा और प्रोषधोपवास प्रतिमा, इन चार प्रतिमाओंका लक्षण जो पहले कह आये हैं वही है । अब सचित्तत्याग प्रतिमाका लक्षण कहते हैं । भावार्थपहले जो सम्यग्दर्शन और अष्ट मूलगुणों को कह आये हैं उसे दर्शनप्रतिमा समझना चाहिए । निरतिचार पांच व्रतों और सात शीलोंका पालना व्रत प्रतिमा है, जिनका पूर्वमें कथन कर आये हैं । जो सामायिक - शीलका पहले लक्षण कह आये हैं वही संक्षेपसे सामायिक प्रतिमा है । और जो प्रोषघोपवासशील है वही प्रोषधोपवास प्रतिमा है । अब पांचवीं सचित्त-त्याग - प्रतिमा कहते हैं ॥ १२१ ॥
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मूलफलशाकशाखाकरीरकन्दप्रसूनवीजानि ।
नामानि योsति सोऽयं सचित्तविरतो दयामूर्तिः ॥ १२१ ॥