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वर्णिकाचार।
जो जीवोंकी हिंसाके कारण नौकरी, खेती वगैरह सब तरहके व्यापार आदिसे विरक्त होता है वह आरंभत्याग-प्रतिमा-धारी श्रावक है ॥ १३८ ॥
परिग्रह-त्याग-प्रतिमा। मोत्तूण. वत्थमेत्तं परिग्गहं जो विवज्जदे सेसं.।
तत्थ विमुच्छं ण करेदि वियाण सो सावओ णवमो॥ १३९ ॥ जो पहनने ओढ़नेके वस्त्रमात्रको छोड़कर बाकीके सब तरहके परिग्रहोंका त्याग करता है, और जो वस्त्र अपने पास है उनमें भी ममत्वपरिणाम नहीं करता है, वह नवमा परिग्रहत्यागी श्रावक है ॥ १३९ ॥
बाह्य परिग्रहके भेद। ...... क्षेत्रं वास्तु धनं धान्यं दासी दासश्चतुष्पदम्। . . ...... यानं शय्यासनं कुप्यं भाण्डं चति बहिदश ॥१४० ॥
क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, दासी, दास, चतुष्पद (चौपाये ), यान-शय्या-आसन, कुष्य और भांड, ये दश बाह्य परिग्रह हैं ॥ १४० ॥
- अन्तरंग परिग्रह के भेद । मिथ्यात्ववेदहास्यादिषट्कषायचतुष्टयम् ।
रागद्वेषौ च सङ्गाः स्युरन्तरङ्गाश्चतुदेश ॥ १४१॥ मिथ्यात्व, वेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग और द्वेष, ये चौदह अंतरंग परिग्रह हैं ॥ १४१ ॥
बाह्यग्रन्थविहीना दरिद्रमनुजास्तु पापतः सन्ति।
पुनरभ्यन्तरसङ्गत्यागी लोकेऽतिदुर्लभी जीवः ॥ १४२॥ . ... पापके उदयसे कई दरिद्री मनुष्य बाह्य परिग्रहसे रहित होते हैं, किंतु अभ्यन्तर परिग्रहका त्यागी जीव लोकमें अत्यंत दुर्लभ है ॥ १४२ ॥ ..
.. अनुमति-त्याग प्रतिमा । ..... .. .. पुट्टो वा पुष्टो वा णियगेहपरेहि सगिहकज्जे।
अणुमणणं जो ण कुणदि वियाण सो साववो दसमो ॥१४३॥ जो अपने स्त्री पुत्र आदिके पूछनेपर. अथवा न पूछनेपर किसी तरह. भी इस लोकसंबंधी घरके कामों में अपनी राय नहीं देता है उसे अनुमति-त्याग नामका दशवाँ श्रावक समझना चाहिए ॥ १४३ ॥
उद्दिष्ट-त्याग प्रतिमा। एकादशके स्थाने सूत्कृष्टः श्रावको भवेत् द्विविधः।
वस्खैकधरः प्रथमः कोपीनपरिग्रहोऽन्यस्तु ॥ १४४ ॥ ग्यारहवें स्थानवर्ती श्रावक उत्कृष्ट श्रावक कहा जाता है, जो दो तरहका है। एक खंडवस्त्र-धारी और दूसरा कौपीन-धारी ॥ १४४ ॥
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