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त्रैवर्णिकाचार।
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घपुः कान्तिश्च दीप्तिश्च लावण्यं पियवाक्यता । कलाकुशलता चात शरीरान्वयिनो गुणाः ॥ ६ ॥ कुलजा तिवयोविद्याकुटुम्बरूपसम्पदः।
चारित्रं पौरुषं चात शरीरान्वायना गुणाः ॥७॥ अच्छा सुडौल दृढ़ शरीर, कान्ति, दीप्ति, सौंदर्य, मधुर वचन; कलाओंमें कुशलता, उत्तम कुल, उत्तम जाति, वय (दीर्घायु), विद्या, परिवार, रूप, सम्पत्ति, चारित्र और पोरुष भनपुंसकता), ये शरीरसंबंधी गुण हैं, जो वरमें होने चाहिए ॥ ६-७ ॥ ............. ..
पूर्वमायुः परीक्षेत पश्चाल्लक्षणमेव च ।
आयुहीनजनानां च लक्षणैः किं प्रोजनम् ॥ ८ ॥ - सबसे पहले वरकी आयुको परीक्षा करना चाहिए । बाद उसमें गुणों की जांच करना उचित है । क्योंकि आयुहीन मनुष्यों के लक्षणोंसे फिर प्रयोजन ही क्या है ॥ ८॥ ....... .....
तथा विज्ञाय यत्नेन शुभाशुभामति स्थितम् ।
लक्षणं शुभकन्यायां शुभकन्यां वरेद्वरः ॥ ९॥ इसी तरह वर, कन्याके भी शुभ अशुभ लक्षणों को जानकर, उत्तम कन्याके साथ विवाह करे ॥5॥
अशुभ लक्षणवाली कन्याका फल । मातरं पितरं चापि भ्रातरं देवरं तथा।
पतिं विनाशयेनारी लक्षणैः परिवर्जिता ॥ १० ॥ .. लक्षणोंसे रहित कुलक्षणा कन्या माता, पिता, भाई, देवर तथा पतिका नाश करनेवाली होती है ॥ १० ॥
कन्याके परीक्षा करने याग्य चिह्न । हस्तौ पादौ परीक्षेत अङ्गुलीश्च नखांस्तथा । पाणिरेखाश्च जंघे च कटिं नाभिं तथैव च ॥११॥ ऊरुश्चोदरमध्यं च स्तनौ कर्णी भुजावुभौ । वक्षःस्थलं ललाटं च शिरः केशांस्तथैव च ॥ १२ ॥ रोमरानि स्वरं वर्ण ग्रीवां नासादयस्तथा।
एतत्सर्व परीक्षेत सामुद्रिक विदार्यकः ॥ १३॥ सामुद्रिक शास्त्रका वेत्ता पुरुष कन्याके दोनों हाथ, दोनों पैर, उंगलियां, नख, हाथोंकी रेखाएं, दोनों घुटने, कटि, नाभि, छाती, उदरका मध्यभाग, स्तन, कान, भुजाएं, वक्षस्थल, ललाट, सिर, केश, रोमावली, स्वर, रंग, गर्दन तथा नाक आदि सारे अंगोंकी परीक्षा करे ॥ ११-१३ ॥ .
- कन्याके शुभाशुभ लक्षण।। . ..... पादौ समाङ्गुली स्निग्धौ भूम्यां यदि प्रतिष्ठितौ ।। १ . कोमको चैव रक्तौ च सा कन्या गृहमण्डिनी॥१४॥