________________
२७४
सोमसेनभट्टारकविरचितपदि स्त्री आदिकोंका माली आदि स्पर्य शूद्रोंसे संसर्ग होगया हो तो वे पांच प्रोषधोपवास और दश एकाशन करें तथा बीस पात्रोंको दान देवें ॥ ९४ ॥
सूतके जन्ममृत्योश्च प्रोषधाः पंच शक्तितः। .....-----
एकभक्ता दशैकाधपात्रदानं च चन्दनम् ।। ९५ ॥ जन्म और मृत्युसंबंधी सूतकवालेसे संसर्ग होजाय तो अपनी शक्ति के अनुसार पांच प्रोषधोपवास करे, एकसे लेकर दशपर्यंत एकाशन करे, इतने ही पात्रोंको दान और चंदन देवे ॥ ९५ ॥
आयाते मुखेऽस्थिखण्ड चोपवासास्त्रयो मताः।
एकभुक्ताश्च चत्वारा गन्धाक्षताः सशक्तितः ॥ ९६ ॥ यदि मुंहमें हड्डीका टुकड़ा चला जाय तो तीन उपवास और चार एकाशन करे । तथा अपनी शक्तिके अनुसार गन्ध अक्षत देवे ॥ ९६ ॥
स्पर्शितेऽस्थिकरे स्वाङ्गे स्नात्वा जपशतत्रयम् ।
अस्थि यथा तथा चमकेशश्लेष्मम लादिम् ॥ ९७॥ जिसने अपने हाथमें हड्डी ले रखी हो उससे या वैसे ही हड्डीसे अपने शरीरका स्पर्श होजाय तो स्नान कर तीन सौ जाप करे । जैसा हड्डीसे छू जाने का प्रायश्चित्त है वैसा ही चमड़ा, केश, श्लेष्म (खकार), मल, मूत्र आदिसे छू जानेका समझना चाहिए ॥ ९७ ।।
गर्भस्य पातने पापे मेषधा द्वादश स्मृताः।
एकभत्ताश्च पञ्चाशत् पुष्पाक्षताश्च शक्तितः ॥९८॥ गर्भपातका पाप होनेपर बारह प्रोषधोपवास, पचास एकाशन और अपनी शक्तिके अनुसार पुष्प-अक्षत माने गये हैं ।। ९८॥
अज्ञानाद्वा प्रमादाद्वा विकलत्रयघातने ।
मोषधा द्विात्रचत्वारो जपमालास्तथैव च ॥ ९९ ॥ अशानसे अथवा प्रमादसे दो इंद्रिय, तीन-इंद्रिय और चार-इंद्रिय जीवका घात होगया हो तो कमसे दो उपवास, तीन उपवास और चार उपवास करे, तथा दो बार, तीन बार और चार बार जाप करे ॥ १९॥
घातिते तृणभुग्जावे पोषधा अष्टाविंशतिः।
पात्रदानं च गोद नं पुष्प क्षतः स्व तः ॥१०॥ तुण-चारी जीवका घात हो जानेपर अठाईस प्रोषधोपवास करे और अपनी शक्ति-अनुसार पात्रदान, गो-दान तथा पुष्प-अक्षत देवे ॥ १० ॥
जलस्थलचरणां तु पक्षिणां घातकः पुमान् । गृहे मूषकमाजोरवादीनां दन्तदोषिणाम् ॥ १०१॥ पोषधा द्वादशैकान्नाभिषेकाश्चानु षोडश । गोदानं पात्रदानं तु यथाशक्ति गुरोर्मुखात् ॥ १०२॥