________________
त्रैवर्णिकाचार।
२७३
विजातीयानां गेहे तु भुक्ते चोपोषणं नव ।
एकभुक्ताश्च पञ्चाशदत्राभिषेकाः समाः ॥ ८६ ॥ विजातीय लोगाके घरपर भोजन कर लिया हो तो नौ उपवास, पचास एकाशन और इतने हो अभिषेक करे ॥ ८६ ॥
मृतेऽनौ पातके मोक्ताः प्रोषधाः पञ्चविंशतिः।
एकभुक्त्यनदानाभिषेकपुष्पशतत्रयम् ॥ ८७॥ अनिमें जलकर मरजाने वालेके शरीर-संस्कार करने वालेकी शुद्धि, पच्चीस उपवास करने, तीन सौ एकाशन करने, तीन सौ अन्नदान देने, तीन सौ बार जल-स्नान करने और तीन सौ पुष्प देनेसे होती है ।। ८७ ॥
गिरेः पातोऽहिदष्टश्च गजादिपतनान्मृतः। मोषधाः पञ्च पकानयात्राभिषकविंशतिः ॥ ८८॥ तीर्थयात्राञ्च गोदानं गन्धपुष्पाक्षतादयः।
यथाशक्ति गुरोः पूजा द्रव्यदानं जिनालये ॥ ८९ ॥ पर्वतपरसे गिरनेसे, सांपके डस लेनेसे, हाथी वगैरह परसे गिरनेसे यदि कोई मरगया हो, तो उसके शरीरका संस्कार करने वालेकी शुद्धि पांच प्रोषधोपवास करनेसे, बीस सत्पात्रोंको दान करनेसे, बीस बार जल स्नान करनेसे, तीर्थयात्रा करनेसे और अपनी शक्ति-अनुसार जिन-मंदिरमें द्रव्य देनेसे होती है॥ ८८-८९ ॥
प्रायश्चित्तेषु सर्वेषु शिरोमुण्डं विधीयते । काश्मीरागुरुपुष्यादिद्रव्यदानं स्वशक्तितः॥ ९०॥ ग्रहपूजा यथायोग्यं विप्रेभ्यो दानमुत्तमम् ।
संघपूजा गृहस्थेभ्यो ह्यन्नदानं प्रकीर्तितम् ॥ ९१ ॥ सब तरहके प्रायश्चित्तोंमें शिरका मुंडन करावे, अपनी शक्ति-अनुसार केशर, अगुर, पुष्पअक्षत आदि द्रव्योंका दान करे, जो ग्रह जैसे हों उनका उन्हींके योग्य सत्कार करे, ब्राह्मणों को दान दे, संघकी पूजा करे और गृहस्थोंको भोजन करावे ।। ९०-९१ ॥
चाण्डालादिकसंसर्ग कुर्वन्ति वनितादिकाः। पञ्चाशत्लोषधश्चैकभक्तः पञ्चशतानि च ॥ ९२ ॥ सुपात्रदानं यात्राश्व पश्चाशत्पुष्पचन्दनम् ।
संघपूजा च जापं च द्रव्यदानं जिनालये ॥ ९३ ॥ यदि भावकोंकी स्त्री वगैरहका चांडालादिसे स्पर्श होगया हो तो वे पचास प्रोषधोपवास, और पांचसो एकाशन करें, सुपात्रोंको दान दें, तीर्थयात्रा करें, पचास पुष्प-चंदन देवें, चारों संघकी पूजा करें, जाप जपें और जिनालयमें द्रव्य देवें ॥ ९२-९३ ॥
मालीकादिकसंसर्ग कुर्वन्ति वनितादयः। मोषधाः पञ्च चैकानदश पात्राणि विंशतिः ॥ ९४ ॥