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सोमसेनभट्टारकविरचित
लिंपिसंख्यान कर्म |
द्वितीयजन्मनः पूर्वमक्षराभ्यासमाचरेत् । मौञ्जीबन्धनतः पश्चाच्छास्त्रारम्भो विधीयते ।। १६३ ॥ पचमे सप्तमे चान्दे पूर्व स्यान्मौञ्जिबन्धनात् । तत्र चैवाक्षराभ्यासः कर्तव्यस्तुदगयने ॥ १६४ ॥
द्वितीय जन्म के पहले अर्थात् उपनयन- संस्कारकी क्रिया करनेके पहले बालकको अक्षराभ्यास कराना चाहिए | क्योंकि उपनयनके बाद तो शास्त्रारंभ किया जाता है । उपनयनसे पहले पांचवें अथवा सातवें वर्षमें बालकको अक्षराभ्यास करावे । अक्षराभ्यास उत्तरायणमें करावे ॥१६३-१६४॥ मृगादिपञ्चस्वपि तेषु मूले । हस्तादिके च क्रियतेऽश्विनीषु ।
पुर्वात्रये च श्रवणत्रये च । विद्यासमारम्भमुशन्ति सिद्धयै ॥ १६५ ॥
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मृग, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मूल, हस्त, चित्रा, अश्विनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, श्रवण, धनिष्ठा, और शततारका, इन नक्षत्रों में विद्यासिद्धिके लिए बालकको विद्या सिखाना प्रारंभ किया जाय, ऐसा बुद्धिमानोंका कहना है || १६५ ॥
आदित्यादिषु वारेषु विद्यारम्भफलं क्रमात् । आयुजडथं मृतिर्मेधा सुधीः प्रज्ञा तनुक्षयः ॥ १६६ ॥ अनध्यायाः प्रदोषाश्च षष्ठी रिक्ता तथा तिथिः । वर्जनीया प्रयत्नेन विद्यारम्भेषु सर्वदा || १६७|| विद्यारम्भे शुभा प्रोक्ता जीवज्ञप्तितवासराः ।
मध्यमौ सोमसूर्यौ च निन्द्यचैव शानः कुजः ॥ १६८ ॥ उदग्गते भास्वति पञ्चमेऽब्दे । प्राप्तेऽक्षरस्वीकरणं शिशुनाम् ॥ सरस्वती क्षेत्रसुपालकं च । गुडोदनाद्यैरभिपूज्य कुर्यात् ॥ १६९ ॥
आदित्यादिवारों को विद्या सिखाना आरंभ करनेका फल क्रमसे इस प्रकार जानना । रविवार को विद्या सिखाना प्रारंभ करनेसे आयुष्य बढ़ती है, सोमवारको बुद्धि मोटी हो जाती है, मंगलवार को मृत्यु प्राप्त होती है, बुधवारको मेधा बढ़ती है अर्थात् धारणाशक्ति उत्पन्न होती है, गुरुवारको सुधीःबुद्धि कुशल होती है, शुक्रवारको प्रज्ञा अर्थात् ऊहापोह ( तर्कवितर्क रूप शक्ति उत्पन्न होती है, ) और शनिवारको विद्या प्रारंभ करनेसे शरीर क्षीण होता है । अनध्यायके दिनोंको, प्रदोषके समय, छठको, रिक्तातिथि अर्थात् चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशीको विद्या प्रारंभ न करावे । विद्या प्रारंभ कराने के लिए बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार शुभ माने गये हैं, सोमवार और रविवार मध्यम हैं, और शनिवार और मंगलवार निकृष्ठ हैं । बालकको पांचवां वर्ष लगनेपर सूर्यके उत्तरायण होनेपर अक्षराभ्यास करानेका मुहूर्त करे । उस समय सरस्वती और क्षेत्रपालकी गुड़, चावल आदि से पूजा करे || १६६-१६७ ॥
एवं सुनिश्चिते काले विद्यारम्भं तु कारयेत् ।
विधाय पूजामम्बायाः श्रीगुरोश्च श्रुतस्य च ।। १७० ।।