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त्रैवर्णिकाचार |
थाली अथवा पत्तलके बीच में भात वगैरह अन्न परोसे, दाहिनी ओर घी और दूध, शाक दाल आदि सामने, और बाकीके भक्ष्य तथा भोज्य पदार्थोंको बाई ओर परोसे ।। १७५ ॥ भोजन करने को बैठने की विधि |
पात्रं धृत्वा तु हस्तेन यावद्ग्रासं न भुज्यते । अन्नं प्रोक्ष्यामृतीकृत्य सेचयेद्विमलैर्जलैः ।। १७६ ।
भोजनका ग्रास मुंहमें न ले उसके पहले पात्रको हाथसे रखकर प्रथम अन्नको मंत्र द्वारा प्रोक्षण कर और उसको अमृत बनाकर चारों ओर जल सींचे ॥ १७६ ॥ उसके मंत्र ये हैं
ॐ ह्रीं झं वं ह्नः पः हः इदममृतानं भवतु स्वाहा । अत्र प्रोक्षणम् ||१||
यह मंत्र पढ़ कर भोजनको अमृत बनावे और प्रोक्षण करे ।
ॐ ह्रीं झौं झौं भूतप्रेतादिपरिहारार्थं परिषेचयामि स्वाहा । परिषेचनम् ॥ २ ॥
यह मंत्र पढ़ कर भोजनकी थालीके चारों ओर पानी सींचे ।
अन्नेनैव घृताक्तेन नमस्कारेण वै भुवि । तिस्र एवाहुतीर्दद्याद्भोजनादौ तु दक्षिणे ।। १७७ ।। बलिं दत्वोर्विदेवेभ्यः करौ प्रक्षाल्य वारिभिः । अमलीफलमात्रं तु गृह्णीयाद्ग्रासमुत्तमम् ॥ १७८ ॥
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भोजन प्रारंभ करनेके पेश्तर दाहिनी ओर भूमिपर “ उर्वि देवेभ्यो नमः यह मंत्र पढ़कर घीसे मिले हुए अन्नकी तीन आहूतियाँ देवे । पृथिवीके अधिष्ठाता देवको यह बलि देकर दोनों हाथों को जलसे धोकर आँवलेके फलकी बराबर उत्तम ग्रास मुंहमें लेवे ॥ १७७-- १७८ ॥
ॐ क्ष्वीं स्वीं हं सः आपोशनं करोमि स्वाहा । इति शंखमुद्रया जलं पिबेत् ॥ ३ ॥
यह मंत्र पढकर शंखमुद्रासे जल पीवे
ॐ ह्रीं इन्द्रियमाणाय स्वाहा ॥ १ ॥ ॐ नहीं कायबलप्राणाय स्वाहा ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं मनोबलप्राणाय स्वाहा || ३ || ॐ नहीं उच्छ्वासप्राणाय स्वाहा ॥ ४ ॥ ॐ नहीं आयुःप्राणाय स्वाहा ।। ५ ।। इति पञ्चप्राणाहुतीर्दत्वा भुञ्जीत ॥ ४ ॥