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सोमसेनभट्टारकविरचितवर्षासु सूक्ष्मवस्त्रेषु जन्तूनां सम्भवो भवेत् ।
तत्पतिलेखनं कार्य श्रावकैधमहेतवे ॥ ११४ ॥ बरसातके दिनोंमें बारीक कपड़ोंमें प्रायः जीवोंकी उत्पत्ति होनेकी संभावना रहती है। इसलिए श्रावकोंको धर्मके निमित्त ऐसे कपड़े निरन्तर झाड़ पोंछ कर साफ रखने चाहिए ॥ ११४ ॥
रोमचर्मभवं वस्त्रं कौशेयं रक्तवर्जितम् ।---- . नीचगृहारनालेन संलिप्तं नैव विक्रयेत् ॥ ११५ ॥ __ ऊनी, चमड़ाके, बिना रंगे हुए (१) कोशेके तथा नीच घरोंका चांवल आटा आदिका मांड (कडप) लगे हुए कपड़े न बेंचे ॥ ११५ ॥ .
सूत्रं च पट्टसूत्रं च कार्पासं नैव दोषभाक् ।।
पट्टसूत्राण्डकौशाण्डेः श्रावकैनैव गृह्यते ॥ ११६ ॥ (?) ___ सूत, पट्टसूत्र (रेशम) और रुई-कपासका व्यापार करना दूषित नहीं है । तथा पट्टसूत्रांड, कौशांडका व्यापार श्रावकगण न करें ॥ ११६ ॥
सुवर्ण रजतं रत्नं गृण्हीयान्मौक्तिकं तथा ।
कपटं तत्र नो कार्य बहिर्लेपादिसम्भवम् ॥ ११७ ॥ श्रावकगण, सोना, चाँदी, रत्न और मोतियोंका व्यापार करें । तथा व्यापारमें किसी हीन (खोटी ) चीजपर किसी चीजका झोल आदि देकर-पालिशकर चोखी कहकर न बेंचे ॥ ११७ ॥
कूटद्रव्यं स्वयं ज्ञात्वाऽज्ञानिनं नैव विक्रयेत् ।
अतिवृद्धं तथा बालं मुग्धं भद्रं न धूर्तयेत् ॥ ११८ ॥ यह माल खोटा है, ऐसा अपनेको मालूम हो जानेपर अज्ञानियोंको वह माल न बेंचे । तथा बूढ़े, बालकों, मुग्धों और सजन पुरुषोंके साथ धूर्तता न करे ॥ ११८ ॥
चोरद्रव्यं नृपद्रव्यं भूपालद्रोहिणस्तथा ।
चेटीचेटकयोर्वित्तं न ग्राह्यं साधुभिर्जनैः ॥ ११९ ॥ चोरीका माल, राजाका माल; राजद्रोहीका माल, तथा दास-दासीका माल सजन पुरुषोंको न लेना चाहिए ॥ ११९ ॥
विस्मृतं पतितं गुप्तवृत्त्या दत्तं च केनचित् ।
रक्षणे स्थापितं भूमौ क्षिप्तं वा नच गोपयेत् ॥ १२० ॥ किसीका भूला हुआ, गिरा हुआ, गुप्तपनेसे अपने पास रक्खा हुआ, रक्षा करनेके लिए अपनेको सम्हलाया हुआ अथवा जमीनमें गढ़े हुए द्रव्यको न ग्रहण करे ॥ १२० ॥
तुलायां न्यायमार्गेण देशधर्मानुसारतः। .
प्रस्तरादिषु मानेषु न्यूनाधिक्यं न कारयेत् ॥ १२१॥ नोट-१,यह श्लोक अशुद्ध मालूम पड़ता है। इससे इसका भाव ठीक ठीक नहीं निकलता । अनु.