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त्रैवर्णिकाचार |
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बिछावे । बालकको स्नान कराकर वस्त्र आभूषण पहनावे । फिर अच्छे मुहूर्तमें उस कपड़ेपर बालकको पद्मासन बैठावे । पद्मासन बैठानेकी विधि यह है कि बालकका मुख पूर्व दिशा की ओर करे, बायें पैरको नीचे और दाहिने पैर को ऊपर करे, तथा पैरोंके ऊपर उसके दोनों हाथ धरे । इस तरह बैठाकर उसकी आरती उतारे और विप्रगण आशीर्वाद दें। उस दिन सब सज्जनोंकोः प्रीतिपूर्वक भोजन करावे । " सम्पूज्य श्रीजिनभूमिकुमारान् पंच पूजयेत " ऐसा भी पाठ है, जिसका 1 अर्थ होता है कि पांच कुमार बालब्रह्मचारी जिनोंकी पूजा करे ॥ १३१--१३५॥
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मंत्र-ॐ ह्रीं अर्ह अ सि आ उ सा बालकमुपवेशयामि स्वाहा ।
इस मंत्र को बोलकर बालकको बैठावे ।
अन्नप्राशन- क्रिया । तथा च सप्तमे मासे शुभ शुभवासरे । अन्नस्य प्राशनं कुर्याद्बालस्य वृद्धये पिता ॥ १३६ ॥ जिनेन्द्रसदने पूजा महावैभवसंयुता । आदौ कार्या ततो गेहे शुद्धानं क्रियते बुधैः ।। १३७ ॥ ततः प्राङ्मुखमासित्वा पिता माताऽथवा सुतम् । दक्षिणाभिमुखं कृत्वा वामोत्सङ्गे निवेशयेत् ॥ १३८ ॥ क्षीरानं शर्करायुक्तं घृताक्तं प्राशयेच्छिशुम् ।
दध्यन्नं च ततः सर्वान्बान्धवानपि भोजयेत् ।। १३९ ॥
बालकको पहले-पहल अन्न खिलानेको अन्नप्राशन कहते हैं। सातवें महीने शुभ क्षत्र और शुभ दिनमें बालककी वृद्धिके लिए पिता इस विधिको करे । प्रथम भारी ठाठ-बाटके साथ जिनमंदिर में जिनदेवकी पूजा करे | बाद अपने घर में शुद्ध भोजन तैयार करावे । इसके बाद माता अथवा पिता दक्षिण दिशा की ओर मुखकर बैठे, और बालकका पूर्वदिशाकी ओर मुखकर उसे अपनी बाई गोद में बैठाकर घी शक्कर मिला हुआ, खीर, दही और मिष्टान्न खिलावे | बाद सब बान्धवको भोजन करावे ॥ १३६--१३९ ॥
मंत्र — ॐ नमोऽर्हते भगवते भुक्तिशक्तिप्रदायकाय वालकं भोजयामि पुष्टि - स्तुष्टिश्रारोग्यं भवतु भवतु स्वीं क्ष्वीं स्वाहा ।
यह मंत्र पढ़कर बालकको अन्न खिलावे ।
पादन्यासक्रिया (गमन - विधि )
अथास्य नवमे मासे गमनं कारयेत्पिता । मनोचितनक्षत्रे सुवारे शुभयोगके ॥ १४० ॥ पूजां होमं जिनावासे पिता कुर्याच्च पूर्ववत् ॥ पुत्रं संस्त्राप्यसद्वस्त्रैर्भूषये दूषणैः परम् ॥ १४१ ॥