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सोमसेनभट्टारकविरचितबर्तन-शुद्धि |
भाजनानि मृदां यानि पुराणानि तु सन्त्यजेत् । धातुभाण्डानि वस्त्राणि क्षालनाच्छुचितां नयेत् ॥ १०९ ॥ दद्यात्तु प्रथमे दानं षष्ठे वा पञ्चमेऽपि वा । दशमे देवपूजा स्याददानं तथा बलिः ॥
११० ॥
प्रसूतिके समय जिन बर्तन कपडा आदिने स्पर्श हुआ हो उनमेंसे मिट्टी को तो फेंक दे, तांबे पीतल आदि धातुक बर्तन और कपड़े मांजने-धोनेमे शुद्ध होते हैं। पहले दिन, छठे दिन अथवा पांचवें दिन भी दान दवे । दशवें दिन देवपूजा, आहारदान और बालदान करे ॥ १०९-११०॥ मंत्र — ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं हूं हीं हः नानानुजानुपजो भवभव असि आउ
सा स्वाहा ।
अनेन पुत्रमुखमवलोकयेत । अर्थात् यह मंत्र पढ़कर बालकका मुख देखे । ततश्चैत्यालये पूजाहोमादिकं विधाय तद्गन्धोदकेन स्त्रीपुत्रौ गृहं प्रसिञ्चय स्वजनान् भोजयेत् ।
अर्थात् इसके बाद जिन मन्दिरमें होम आदि करके गन्धोदकसे स्त्रीपुत्र और घरको सींचकर अपने बन्धुवर्गको भोजन करावे ।
नामकर्म - विधि |
द्वादशे षोडशे विंशे द्वात्रिंशे दिवसेऽपि वा । नामकर्म स्वजातीनां कर्तव्यं पूर्वमार्गतः ॥ १११ ॥ द्वात्रिंशदिवसादूर्ध्वं यावत्संवत्सरं भवेत् । नामकर्म तदा कार्यमिति कैश्चिदुदीरितम् ।। ११२ ।। कृत्वा होमं जिनेन्द्राचं शुभेऽन्हि श्रीजिनालये । स्वगृहे वा ततो भक्त्या महावाधानि घोषयेत् ॥ ११३ ॥ सुपीठे दम्पती तौ च सपुतौ भूषणान्वितौ ।
निवेश्य सेचयेत्सूरिःपुण्याहवचनैः परैः ॥ ११४ ॥
जन्म के बारहवें, सोलहवें, बीसवें अथवा बत्तीसवें दिन अपनी कुलपरंपरा के अनुसार नामकर्म
विधि करें । बालकका नाम रखनेको नामकर्म विधि कहते हैं । यदि बत्तीसवें दिन नामकर्म विधि
न कर सके तो फिर जब एक वर्ष पूरा हो जाय तब करे, ऐसा भी किसी २ का कहना है । इस विधि में भी शुभ दिन में जिनमन्दिर अथवा अपने घर में भक्तिभावसे होम और जिनपूजा करे तथा बाजे बजबाबे | और दोनों पति-पत्नी तथा पुत्रको कपड़े गहने आदि से सजाकर अच्छी चौकीपर बैठाकर पुण्याहवचनों द्वारा गृहस्थाचार्य उनका सेचन करे ।। १११ - ११४॥
जातके नाम के चैव नमाशनकर्मणि ।
व्रतरोपे च चौले च पत्नीपुत्रौ स्वदक्षिणे ॥ ११५ ॥