SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४६ सोमसेनभट्टारकविरचितबर्तन-शुद्धि | भाजनानि मृदां यानि पुराणानि तु सन्त्यजेत् । धातुभाण्डानि वस्त्राणि क्षालनाच्छुचितां नयेत् ॥ १०९ ॥ दद्यात्तु प्रथमे दानं षष्ठे वा पञ्चमेऽपि वा । दशमे देवपूजा स्याददानं तथा बलिः ॥ ११० ॥ प्रसूतिके समय जिन बर्तन कपडा आदिने स्पर्श हुआ हो उनमेंसे मिट्टी को तो फेंक दे, तांबे पीतल आदि धातुक बर्तन और कपड़े मांजने-धोनेमे शुद्ध होते हैं। पहले दिन, छठे दिन अथवा पांचवें दिन भी दान दवे । दशवें दिन देवपूजा, आहारदान और बालदान करे ॥ १०९-११०॥ मंत्र — ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं हूं हीं हः नानानुजानुपजो भवभव असि आउ सा स्वाहा । अनेन पुत्रमुखमवलोकयेत । अर्थात् यह मंत्र पढ़कर बालकका मुख देखे । ततश्चैत्यालये पूजाहोमादिकं विधाय तद्गन्धोदकेन स्त्रीपुत्रौ गृहं प्रसिञ्चय स्वजनान् भोजयेत् । अर्थात् इसके बाद जिन मन्दिरमें होम आदि करके गन्धोदकसे स्त्रीपुत्र और घरको सींचकर अपने बन्धुवर्गको भोजन करावे । नामकर्म - विधि | द्वादशे षोडशे विंशे द्वात्रिंशे दिवसेऽपि वा । नामकर्म स्वजातीनां कर्तव्यं पूर्वमार्गतः ॥ १११ ॥ द्वात्रिंशदिवसादूर्ध्वं यावत्संवत्सरं भवेत् । नामकर्म तदा कार्यमिति कैश्चिदुदीरितम् ।। ११२ ।। कृत्वा होमं जिनेन्द्राचं शुभेऽन्हि श्रीजिनालये । स्वगृहे वा ततो भक्त्या महावाधानि घोषयेत् ॥ ११३ ॥ सुपीठे दम्पती तौ च सपुतौ भूषणान्वितौ । निवेश्य सेचयेत्सूरिःपुण्याहवचनैः परैः ॥ ११४ ॥ जन्म के बारहवें, सोलहवें, बीसवें अथवा बत्तीसवें दिन अपनी कुलपरंपरा के अनुसार नामकर्म विधि करें । बालकका नाम रखनेको नामकर्म विधि कहते हैं । यदि बत्तीसवें दिन नामकर्म विधि न कर सके तो फिर जब एक वर्ष पूरा हो जाय तब करे, ऐसा भी किसी २ का कहना है । इस विधि में भी शुभ दिन में जिनमन्दिर अथवा अपने घर में भक्तिभावसे होम और जिनपूजा करे तथा बाजे बजबाबे | और दोनों पति-पत्नी तथा पुत्रको कपड़े गहने आदि से सजाकर अच्छी चौकीपर बैठाकर पुण्याहवचनों द्वारा गृहस्थाचार्य उनका सेचन करे ।। १११ - ११४॥ जातके नाम के चैव नमाशनकर्मणि । व्रतरोपे च चौले च पत्नीपुत्रौ स्वदक्षिणे ॥ ११५ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy