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सोमसेनभट्टारकविरंचितएतान्किमपि नो देयं स्पर्शनीयं कदापि न। .
न तेषां वस्तुकं ग्राह्य जनापवाददायकम् ॥ १३१ ॥ ' इन लोगोंको कुछ भी न दे, न उनकी कोई वस्तु ले और न कभी उनको छुए । क्योंकि ऐसा करनेसे संसारमें अपनी बदनामी होती है ॥ १३१॥ --------
रजको रअकश्चैव भाडिभुञ्जतिलन्तुदो।
चक्राग्निभस्मपाषाणचूर्ण न कारयेत्रियाम् ॥ १३२॥ धोबी, रँगरेज़, भड़भूजे और तेलीको उनके कामोंके बारेमें उत्तेजना न करे । तथा गाडीका चाक, अग्नि, भस्म, पत्थर फोड़ना आदि कार्य करनेको किसीसे न कहे ॥ १३२ ॥
विपक्षत्रियवैश्यैश्च स्पृश्यशूद्रैस्तथा सह ।
व्यापारकरणं युक्तं नीचैर्नीचत्वमुद्भवेत् ॥ १३३ ॥ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और स्पृश्य शूद्रोंके साथ व्यापार करना चाहिए । नीचोंके साथ व्यापार करनेसे अपनेमें नीचता आती है ॥ १३३ ॥
काछिकमालिको कांस्यकनकलोहकारकाः । सूत्रधारः सूचीधारः कुविन्दः कुम्भकारकः॥ १३४ ॥ रङ्गकारः कुटुम्बी च भाडभुञ्जस्तिलन्तुदः।।
ताम्बूली नापितश्चैव स्पृश्यशूद्रा; प्रकीर्तिताः ॥ १३५॥ काछी, माली, कसेरे-ठटेरे, सुनार, लुहार, सिलावट, सूचीधार, हिन्दू जुलाहे, कुम्हार, रंगरेज, कुटुंबी, भड़भूजे, तेली, तमोली, नाई इत्यादि लोग स्पृश्य शूद्र माने गये हैं ॥ १३४-१३५॥
योग्यायोग्यमिदं दृष्ट्वा व्यापारः क्रियते बुधैः । दूरदेशगमार्थं च वृषभं वाहयेन्नरः ॥ १३६ ॥ अल्पभारं परिक्षिप्य शनैः सञ्चालयबुधः । आहारोदकपूरेण यावत्तृप्ति तु पूरयेत् ॥ १३७ ॥ पृष्ठे शोफादिके जाते कृपया परिच्छेदयत् ।
उपशमो न यावच तावद्भारं न धारयेत् ॥ १३८ ॥ बुद्धिमान् वैश्योंका कर्तव्य है कि वे उपर्युक्त योग्य और अयोग्य लोगोंका विचार कर उनके साथ व्यापार-धंधा करें। यदि व्यापारके लिए देशान्तरोंको जाना हो तो बैलोंपर लाद कर माल ले जावे। जिन बैलोंपर माल ले जावे उनपर थोड़ा (माफिकका) बोझा लादे और उन्हें धीरे धीरे चलावे । उनको खाने पीनेके लिए घांस-पानी आदि भर पेट देवे। यदि उनकी पीठ वगैरहपर सूजन आदि आ गई हो तो दया-पूर्वक उसका इलाज करे । जबतक उनका रोग दूर न हो तबतक उनपर बोझा न लादे ॥ १३६-१३८ ॥ ... जलयाने सदाचारं रक्षयेद्धमहेतवे ।
कदाचित्कर्मयोगेन मग्नं चेत्संस्मरेज्जिनम् ॥ १३९ ॥