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सोमसेनभट्टारकविरचितस्त्रीके ऋतुस्नान होनेपर जो पुरुष उस स्त्रीके पास नहीं जाता है वह अपने माता पिताक साथ साथ भ्रूणहत्याके घोर पापमें डूबता है । भावार्थ-कितने ही लोग ऐसी बातोंमें आपत्ति करते हैं । इसका कारण यही है कि वे आजकल स्वराज्यके --नसेमें चूर हो रहे हैं। अतः हरएको समानता देनेके आवेश में आकर उस क्रियाके चाहनेवाले लोगोंको भड़काकर अपनी ख्याति-पूजा आदि चाहते हैं । उन्होंने धार्मिक विषयोंपर आघात करना ही अपना मुख्य कर्तव्य समझ लिया है ॥ ४९ ॥
ऋतुस्नाता तु या नारी पतिं नैवोपविन्दति ।
शुनी वृकी शृगाली स्याच्छूकरी गर्दभी च सा ॥ ५० ॥ जो स्त्री ऋतुस्नान कर पतिके पास नहीं जाती है वह मरकर कुत्ती, भेड़ या हिरनी, शृगालिनी (सियारनी ), शूकरी और दिही होती है ॥ ५० ॥
कामयज्ञमिति पाहुहिणां सर्वदैव च । __ अनेन लभते पुत्रं संसाराणेवतारकम् ॥ ५१ ॥ ऊपर यह जो गर्भाधानकी विधि बताई गई है उसे गृहस्थोंका कामयज्ञ कहते हैं। इस विधिसे पिता संसार-समुद्रसे तारनेवाला पुत्र प्राप्त करता है ॥ ५१ ॥
मोद क्रिया। गर्भे स्थिरेऽथ साते मासे तृतीयके ध्रुवम् ।
प्रमोदेनैव संस्कार्यः क्रियामुख्यः प्रमोदकः ॥ ५२ ॥ इस तरह गर्भ रह जानेपर तीसरे महीने बड़े हर्षके साथ मोदनामकी दूसरी क्रिया करे ॥ ५२ ॥
तृतीये गर्भसंस्कारो मासे पुंसवनं च सः।
आधगर्भो न विज्ञातः प्रथमे मासि वै यदि ॥ ५३॥ ___ यदि पहले महीनेमें गर्भवतीका पहला गर्भ न जाना जाय तो तीसरे महीनेमें गर्भसंस्कार करे । वही संस्कार पुरुषचिन्हसे युक्त होता है ॥ ५३ ॥
तैलाभ्यङ्गं जलैरादौ गर्भिणी स्नापयेच्च ताम् । अलङ्कृत्य च सदस्वैः करे फलं समर्पयेत् ॥ ५४॥ उपले शरीरे तु संस्कुर्याच्चन्दनादिना ।
पूर्ववद्धोमसत्कार्य जिनपूजापुरःसरम् ॥ ५५ ॥ प्रथम उस गर्भवती स्त्रीके तेलकी मालिश कर जलसे स्नान करावे । उसे अच्छे अच्छे कपड़ोंसे अलंकृत करे । उसके हाथमें एक फल दे । उसके शरीरमें चन्दन, केशर आदिका उपलेप-चर्चन करे । फिर पहलेकी तरह जिनपूजा, होमादि सम्पूर्ण कार्य करे ॥ ५४-५५ ॥