________________
त्रैवर्णिकाचार।
२३३
चौथे दिन वृद्ध सुवासिनी स्त्रियां उन पति-पत्नीको स्नान करावें । फिर वे उन्हें गहनों-कपड़ोंसे अच्छी तरह सजा कर अग्निमंडलोंपर बैठावें और सब क्रियाएँ करें। उनके आगेकी जमीन मिट्टीसे लीपकर हल्दी और चांवलोंसे स्वस्तिकके आकारवाला एक उत्तम यंत्र लिखें । उसपर मंगलके लिए विधिपूर्वक एक कलश स्थापन करें । उस कलशके मुखको पाँच पत्ते, माला, वस्त्र और सूतके धागेसे सुशोभित करें ॥ १५-१७ ॥
__ आचार्यस्तं करे धृत्वा पुण्याहवचनैर्वरैः।
सिञ्चयेदम्पती तौ च पुण्यक्षेमार्थचिन्तकः ॥ १८ ॥ इसके बाद गृहस्थाचार्य कलशको हाथमें लेकर, इनका कल्याण हो, पुण्य बढ़े और इन्हें सम्पत्ति प्राप्त होवे-ऐसा मनमें चिन्तवन करता हुआ पुण्याहवचनों द्वारा उस कलशके जलसे उन दोनों पति-पत्नीका अभिषेक करे ॥ १८ ॥
त्रिपरीत्य ततो वहिं तत्र चोपाविशेत्पुनः। सौभाग्यवनिताभिश्च कुडकुमैः परिचयेत् ॥ १९ ॥ नीराजनां ततः कृत्वा वर्धयेच्च जलाक्षतैः।
वस्त्रताम्बूलभूषाभिः पूज्यौ तौ ताभिरादरात् ॥ २० ॥ इसके बाद उनसे अग्निकी तीन प्रदक्षिणा दिलाकर वहीं पर बैठा दे । पश्चात् सौभाग्यवती स्त्रियाँ उनके कुंकुमका तिलक करें, आरती उतारे और जल-अक्षत उनके सिरपर डालकर, तुम वृद्धिको प्राप्त होओ-फलो फूलो, ऐसा कहें । इस अवसरपर वे स्त्रियाँ वस्त्र, ताम्बूल, आभूषण आदिसे उनका सत्कार करें-कोई वस्त्र, कोई तांबूल, कोई आभूषण आदि अपनी २ शक्तिके अनुसार उन पति-पत्नीको देकर खुश करें ॥ १९-२० ॥
वरवध्वौ युवाभ्यां भो अस्मद्वंशोऽस्तु दृद्धिमान् ।।
इत्याशीर्वचनस्तौ च संन्तोषाद्वा विसर्जयेत् ॥ २१॥ और हे वधू-वरो! तुम्हारे द्वारा यह हमारा वंश वृद्धिको प्राप्त होवे, इत्यादि आशीर्वाद देकर उन्हें सन्तोषपूर्वक वहाँसे घर भेजें ॥ २१ ॥
स्वजातीयांस्ततः सर्वानन्नदानैश्च तर्पयेत् ।
सद्गन्धैः पूजयेत्पीत्या ताम्बूलाम्बरभूषणैः ॥ २२ ॥ इसके बाद अपने सब जातीय लोगोंको भोजन करावे और तिलक लगाकर तांबूल, कपडे और आभूषणोंसे बड़े प्रेमके साथ उनका सत्कार करे ॥ २२ ॥
इत्यादिकविधिः कार्यः प्रथमतौं स्त्रियो गृहे ।
ततः सन्तानवृद्धिः स्यात्केवलं धर्महेतुका ॥२३॥ ... स्त्रियां जब पहले पहल रजस्वला होवें तब उपर कहे अनुसार सम्पूर्ण विधि करें । इससे केवल धार्मिक सन्तानकी वृद्धि होती है ॥ २३ ॥
स्वगृहे प्राक् शिरः कुर्याच्छ्वाशुरे दक्षिणामुखः । प्रत्यङ्मुखः प्रवासे च न कदाचिदुदङ्मुखः ॥ २४ ॥