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सोमसेनभट्टारकविरचितचतुर्दिक्षु तु ते दीपाः स्थापिताः सन्ति चेदहो ।
शुभदास्तु ततो विश्वे न हि दोषस्तु कश्चन ॥ १७७ ॥ चार दिये चारों दिशाओंमें मुखकर धरनेसे शुभ देनेवाले होते हैं। इसमें पहले कहे हुए कोई दोष नहीं लगते । ॥ १७७ ॥
इत्येवं कथितस्त्रिवर्णजनितो व्यापारलक्ष्म्यागमो। ये कुर्वन्ति नरा नरोत्तमगुणास्तं ते त्रिवर्गार्थिनः ॥ भोगानत्र परत्रजन्मान सदा सौख्यं लभन्ते पर
मन्ते कर्मरिपुं निहत्य विमलं मोक्षं व्रजन्त्यक्षयम् ॥ १७८ ॥ ___इस तरह तीनों वर्णोंका आचार व्यवहार, लक्ष्मीकी प्राप्ति आदिका वर्णन किया । धर्म, अर्थ और काम-इन तीन पुरुषार्थोंके चाहनेवाले जो सज्जन इस त्रैवर्णिक आचरणको करते हैं वे इस जन्ममें उत्तम भोगोंको भोगते हैं और पर जन्ममें भी हमेशा परम सुख पाते हैं। तथा अन्तमें कर्म रूपी बैरियोंको जीतकर वे अक्षय-निर्मल-मोक्षस्थानको जाते हैं ॥ १७८ ॥
त्रिवर्णसल्लक्षणलक्षिताङ्गो । योऽभाणि चातुर्यकलानिवासः।
व्यापाररूपः स च सप्तमोऽसा-। वध्याय इष्टो मुनिसोमसेनैः।।१७९॥ तीनों वर्गों के आचार-व्यवहारसे परिपूर्ण, चातुर्य कलाका निवास-ऐसा यह सदाचारात्मक सातवां अध्याय मुझ सोमसेनमुनिने निरूपण किया ॥ १७९ ॥