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सोमसेनभट्टारकविरचित
सूक्ष्मकोमलमार्जन्या पट्टवस्त्रसमानया ।
मार्जयेत्सदने भूमि बाध्यन्तेऽतो न जन्तवः ॥६॥ वस्त्र जैसी मुलायम और बारीक झाडूसे स्त्री घरको झाडे, जिससे इधर उधर चलते फिरते हुए चींटी आदि जीवोंको बाधा न पहुंचे ॥६॥
तत्रोत्थां धूलिमादाय छायायां प्रासुके स्थले।
सम्प्रसार्य क्षिपेद्यत्नात्करुणायै नितम्बिनी ॥७॥ ___घरमें झाडू लगानेसे जो धूल-कचरा निकलता है उसे छायामें प्रासुक स्थानमें करुणाभावसे फैलाकर गेरे ॥ ७॥
गोमेयेन मृदा वाऽथ सद्योभूतेन वारिणा।
गेहिन्या लेपयेद्नेहं हस्तेनाङ्गिसुयत्नतः ॥८॥ ताजे गोबर और जलसे अथवा मिट्टी और जलसे या केवल पानीसे गृहस्थ स्त्रियां खुद अपने हाथोंसे घरको लीपें और प्राणियोंको पीड़ा न हो-ऐसी सावधानी रक्खें ॥ ८॥
गोमयं स्थापयेत्सद्यो धर्मे चैव निधापयेत् ।
उपलानि सुशुष्काणि निजेन्तूनि सुसञ्चयेत् ॥ ९॥ गृहस्थ स्त्रियां गोबर था और उसे धूपमें सुखावें । इस प्रकार ये जीवजन्तु रहित सूके उपलों ( कंडों )का संचय करें । भावार्थ-यह त्रिवर्णाचार ग्रन्थ है। इसमें तीनों वर्गों के छोटी बड़ी हैसियतके सभी पुरुषोंके कर्तव्य बतलाए गए हैं। ऊंची स्थितिके लोगोंको इन कार्योंसे घृणा नहीं करना चाहिए । यदि वे नौकरोंसे भी सावधानी से ये कार्य करावें तो परमार्थमें कोई हानि नहीं है ॥ ९ ॥
चुल्युत्थभस्मना प्रातर्मर्दयेत्कांस्यभाजनम् ।
पानं वा भोजनं कुयोंद्विना भस्म न शोधितम् ॥ १०॥ सुबह उठकर अपने चूल्हेकी राखसे कांसे आदिके बर्तन मांजे; क्योंकि राखसे मांजे बिना खाने-पीनेके बर्तन साफ नहीं होते ॥ १०॥
गृहीत्वा जलकुम्भाँश्च शनैर्गच्छेज्जलाशयम् ।
शोधितेन जलेनादौ कुम्भान् प्रक्षालयेच्छुचेः ॥ ११॥ जलके घड़े लेकर धीरे धीरे जलाशय पर जावे और शुद्ध छने जलसे प्रथम उन घड़ोंको धोकर साफ करे ॥ ११॥
पत्रिंशदगुलं लम्ब तावदेव च विस्तृतम् । .
अच्छिद्रं सघनं वस्त्रं गृह्यते जलशुद्धये ॥ १२ ॥ .... छत्तीस अंगुल लम्बा और इतनाही चौडा छेद-रहित मोटा कपडा जल छाननेको रक्खे ॥१२॥