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त्रैवर्णिकाचार |
एकविंशतिका अश्वाश्चतुरशीतिपाद्गाः ।
एको हस्ती रथश्चैकः पत्तिरित्यभिधीयते ॥ ७३ ॥
जिसमें इक्कीस घोड़े, चौरासी पियादे, एक हाथी और एक रथ हो उसे पति कहते हैं ॥ ७३ ॥ पत्तिस्त्रिगुणिता सेना तिस्रः सेनामुखं च ताः । सेनामुखानि च त्रीणि गुल्ममित्यनुकीर्त्यते ॥ ७४ ॥ वाहिनी त्रीणि गुल्मानि पृतना वाहिनीत्रिकम् । चमूत्रिपृतना ज्ञेया चमूत्रयमनीकिनी ।। ७५ ।। अनीकिन्यो दश प्रोक्ताः प्राज्ञैरक्षौहिणीति सा । अष्टादशाक्षोहिणी पः प्रभुर्मुकुटवर्द्धनः ॥ ७६ ॥
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तीन पत्तिकी एक सेना, तीन सेनाका एक सेनामुख, तीन सेनामुखका एक गुल्म, तीन गुल्मकी एक वाहिनी, तीन वाहिनीकी एक पृतना, तीन पृतनाकी एक चमू, तीन चमूकी एक अनीकिनी और दश अनीकिनीकी एक अक्षौहिणी सेना होती हैं । ऐसी अठारह अक्षौहिणी सेना के स्वामीको मुकुटबद्ध राजा कहते हैं । एक अक्षौहिणी सेनामें ४५९२७० घोड़े, १८३७०८० पियादे, २१८७० हाथी और २१८७० रथ, कुल मिलाकर २३४००९० सैन्य होते हैं । ७४-७६ ॥ अथ मतान्तरम् || एकमण्डलभू राजा श्रेण्यश्वाष्टादशाधिपः ।
मुकुटबद्ध इत्याख्यः स एव मुनिभिः परः ॥ ७७ ॥
जो राजा एक मंडलका स्वामी हो वह यदि अठारह श्रेणियोंका स्वामी हो तो उसे मुकुटबद्ध राजा कहते हैं । ऐसा भी किसी २ का मत है ॥ ७७ ॥
सेनापतिर्गणपतिर्वणिजां पतिश्च । सेनाचतुष्कपुररक्षचतुः सुवर्णाः ॥ मन्त्रीस्वमात्यसुपुरोधमहास्वमात्याः । श्रेण्यो दशाष्टसहिता विबुधश्व वैद्यः ॥ ७८ ॥
सेनापति, ज्योतिषी, श्रेष्ठी, चार प्रकारका सैन्य ( हाथी, घोडे, प्यादे और रथ ), कोतवाल, ब्राह्मणादि चार वर्ण, मंत्री, अमात्य, पुरोहित, महामात्य, पंडित और वैद्य इन अठारहको श्रेणि कहते हैं ॥ ७८ ॥
एतत्पतिर्भवेद्राजा राज्ञां पञ्चशतानि यम् ।
सेवन्ते सोऽधिराजस्स्यादस्मात्तु द्विगुणो भवेत् ॥ ७९ ॥ महाराजस्ततश्चार्द्धमण्डली मण्डली ततः ।
महामण्डल्यर्धचक्री ततश्चक्रीत्यनुक्रमात् ॥ ८० ॥
अठारह श्रेणियों के अधिपतिको राजा या मुकुटबद्ध राजा कहते हैं। जिसकी ऐसे पांचसी मुकुटबद्ध राजा सेवा करते हों उसे अधिराजा कहते हैं। अधिराजासे दूना महाराजा, महाराजासे दूना अर्धमंडली, अर्धमंडलीसे दूना मंडली, मंडलीसे दूना महामंडली, महामंडलीसे दूंना अर्धचक्री और अर्धचक्रीसे दूना चक्रवर्ती राजा होता है। भावार्थ- मुकुटबद्ध राजाओंका स्वामी अधिराजा होता है । एक हजार मुकुटबद्ध राजाओंका स्वामी महाराजा होता है । दो हजार मुकुटबद्ध राजाओंका
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