________________
· त्रैवर्णिकाचार।
जो मनुष्य चूल्लूमें जल लेकर कुरला करे तो वह उसमेंसे आधेको पी जाय और आधेको जमीनपर डाल दे । ऐसा करनेसे उसके शरीरमें कभी रोग नहीं बढ़ते ॥२२६ ॥
यद्युत्तिष्ठेदनाचम्य भुक्तवानासनादगृही।
सद्यः स्त्रानं प्रकुर्वीत नान्यथाऽशुचितां व्रजेत् ॥ २२७ ॥ यदि भोजन करनेवाला गृहस्थ आचमन किये बिना ही आसनसे उठ खड़ा हो तो वह उसी वक्त स्नान करे; नहीं तो वह अपवित्रताको प्राप्त होता है । सारांश-भोजन करनेके बाद आचमन अवश्य करना चाहिए ॥ २२७॥
भुक्तिवस्त्रं परित्यज्य धारयेदन्यदम्बरम् ।
पूगताम्बूलपर्णानि गृण्हीयान्मुखशुद्धये ॥ २२८ ॥ .. जिस कपड़ेको पहनकर भोजन किया था उसे उतारकर दूसरा कपड़ा पहने, और मुख-शुद्धिके लिए पान-सुपारी खाबे ॥ २२८ ॥
ताम्बूलचर्वणं कुर्यात्सदा भुक्त्यन्त आदरात् ।
अभ्यङ्गे चैव मांगल्ये रात्रावपि न दुष्यति ॥ २२९ ॥ भोजन कर चुकनेके बाद हमेशह तांबूल खाना चाहिए । तेलकी मालिस कर स्नान कर चुकनपर और मांगलीक कार्यके समय रात्रिमें भी पान खाने में कोई दोष नहीं है। यह विधि पाक्षिकश्रावकके लिए है ॥ २२९॥
पान खानेकी विधि। प्रातःकाले फलाधिक्यं चूर्णाधिक्यं तु मध्यमे ।
पर्णाधिक्यं भवेद्रात्रौ लक्ष्मीवान् स नरो भवेत् ॥ २३०॥ ___ सुबहके समय पानमें सुपारी अधिक डालना चाहिए, दोपहरको चूना अधिक होना चाहिए और रात्रिमें पान अधिक होना चाहिए। इस क्रमसे जो तांबूल भक्षण करता है वह पुरुष भाग्यशाली होता है ॥ २३०॥
पर्णमूले भवेदव्याधिः पर्णाग्रे पापसम्भवः ।
चूर्णपर्ण हरत्यायुः शिरा बुद्धिं विनाशयेत् ॥ २३१ ॥ पानका नीचेका हिस्सा खानेसे व्याधि होती है, अग्रभाग खानेसे पाप-उत्पन्न होता है,पान मसलकर खानेसे आयु घटती है और उसका शिरा-डंठल भक्षण करनेसे बुद्धिका नाश होता है;- ॥२३१॥
मूलमग्रं परित्यज्य शिराश्चैव परित्यजेत ।
सचूर्ण भक्षयेत्पर्णमायुःश्रीकीर्तिकारणम् ॥ २३२॥ इसलिए उसका मूलभाग, अग्रभाग और शिरा छोड़कर चूना लगाकर पान खावे । इस प्रकार पान खानेसे आयुष्य, सम्पत्ति और कीर्तिकी वृद्धि होती है ॥ २३२ ॥