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त्रैवर्णिकाचार |
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इसके बाद यजमानकी धर्मपत्नी अपने घरमें अर्हदादि सत्यदेवतोंकी, अभिआदि क्रिया देवोंकी, धनद आदि गृहदेवतोंकी और पद्मावती आदि कुलदेवतोंकी मंत्र पूर्वक पूजा करे, इसेके बाद द्वारपालोंकी पूजा करे, तथा जलाअलिसे पितृदेवोंका तर्पण करे । इस तरह गृहस्थोंका नित्य कर्म होता है ॥ ६३ ॥
एवं सुमन्त्रविधिपूर्वकमत्र कार्य, देवार्चनं सुखकरं जिनराजमार्गम् । कुर्वन्ति ये नरवरास्तदुपासकाः स्युः, स्वर्गापवर्मफलसाधनसाधकाश्च ॥ १ ॥
इस तरह मंत्रोंके द्वारा विधिपूर्वक सुख प्रदान करनेवाला देवार्चन करना चाहिए । जो पुरुष जिनराजके बताये हुए मार्गका अनुसरण-आचरण करते हैं वे उनके उपासक और स्वर्ग -मोक्षके फलोंके कारणों को साधनेवाले बन जाते हैं ॥ १ ॥
कर्मप्रतीतिजननं गृहिणां यदुक्तं श्रीब्रह्मसूरिवरविप्रकषीश्वरेण । सम्यक्तदेव विधिवत्प्रविलोक्य सूक्तं श्रीसोमसेनमुनिभिः शुभमन्त्रपूर्वम् ॥ २ ॥
श्री ब्रह्मसूरिने गिरिस्तोंको नित्य नैमित्तिकका ज्ञान होनेके लिए जो उपाय बताया है उसको अच्छी तरह देखकर शुभ मंत्रों पूर्वक, विधि सहित, मुझ सोमदेव मुनिने कहा है ॥ २ ॥
इति धर्मरसिकशास्त्रे त्रिवर्णाचारे पञ्चमोऽध्यायः ।