________________
१५८
सोमसेनभट्टात्काक्तिचित
उस जमीनमें एक हाथ गहरा और एक हाथ चौड़ा एक गढ़ा खोदे और उसी मिट्टी से उस गढेको भरदे । यदि वह मिट्टी उस गढ़के भर जानेपर गढ़ेसे उंची रह जाय तो जमीन को उत्तम समझे, यदि मिट्टी गढ़ेके बराबर हो तो मध्यम और गढ़ेसे नीची रह जाय तो जघन्य समझे ॥ ९ ॥
प्रदोषे कटसंरुद्धतमिस्रायां च तद्भुवि । ॐ हूं फडित्यस्त्रमन्त्रत्रातायामामभाजने ॥१०॥ आमकुम्भोऽर्ध्वगे सर्पिः पूर्णे पूर्वादितः सिताम् । रक्तां पीतासितां न्यस्य वर्ति सर्वाः प्रबोध्य ताः ॥ ११ ॥ अनादिसिद्धमन्त्रेण मन्त्रयेदाघृतक्षयात् ।
शुद्धं ज्वलन्तीषु शुभं विध्यातीष्वशुभं वदेत् ॥ १२ ॥
ॐ हूं फट् इति अस्त्रमन्त्रः । ॐ णमो अरहंताणमित्यादि धम्मो सरणं पव्वज्जामिपर्यन्तं न्हौं शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा इत्यनादिमन्त्रः ।
जमीनको भी बुरी जाननेका दूसरा उपाय यह हैं कि सूर्यास्त हो जानेपर जब कुछकुछ अन्धेरा छा जाय तब थोड़ीसी जमीनके चारों और परकोटेके मानिन्द चटाई बांध दे जिससे उसमें हवा का प्रवेश न हो सके । बाद उस जमीनपर “ ॐ हूँ फट् ” यह अस्त्र मंत्र लिखे उसके ऊपर एक मिट्टीका कच्चा घड़ा रख कर उस घड़ेपर एक कच्चा मिट्टीका दिया रख दे. उस दियेको घीसे लबालब भरदे, और उसमें पूर्व दिशामें सफेद, दक्षिण दिशामें लाल, पश्चिम दिशा में पीली और उत्तर दिशामें काली बत्ती धरकर सब बत्तियोंको जलावे और उन्हे अनादि सिद्धमंत्र के द्वारा मंत्रित करदे। यदि घृत निबटने तक वे बत्तियां साफ जलती रहें तो जमीनको शुभ समझे और यदि बुझती हुई मालूम पड़ें तो अशुभ समझे ॥ १०॥११॥१२॥
66 ॐ हूँ फट् "
यह अस्त्र मंत्र है । णमो इत्यादि अनादि मंत्र है ।
पातालवास्तुपूजन ।
एवं संगृह्य सद्भूमिं सुदिनेऽभ्यर्च वास्त्वधः । संशोध्याध्यर्धमम्भोभिः प्राग्धरावधि वा तथा ॥१३॥ पातालवास्तु सम्पूज्य प्रपूर्याभ्याप्य तां समात् । प्रासाद लोकशास्त्रज्ञो दिशः संशोध्य सूत्रयेत् ॥ १४ ॥
इस प्रकार जमीनकी परीक्षा कर अच्छे मुहूर्तमें उसकी पूजा करे। बाद उस जमीनको पान सींच कर शुद्ध करे । उसमें एक खड्डा खोदे । उस खड्डेमें पाताल वास्तुकी पूजा करे | बाद छोटेछोटे
1