________________
सोमसेमभचारविषित
स्नान करके या न करके भी साफ सुथरी जमीन पर बैठकर अचव अश्य करे । क्योंकि आचमनके करनेसे गिरस्ती पवित्र माना गया है ॥६०॥
देशं कालं वयो वंशं मोत्रं जाति गुरं तथा।----
संस्मृत्य प्राङ्गसन्ध्यावां संकरप्याचमनं चरेत् ।। ६१ ॥ प्रातःकालीन सन्ध्याके समय अपना देश, काल, अवस्था, कुल, गोत्र, जाति तथा गुरुका स्मरण कर मंत्रपूर्वक आचमन करे । ६१ ॥
पूर्ववद्वस्त्रमादाय कुर्यादाचमनं बुधः ।
न तिष्ठम स्थितो नम्रो नामन्त्रो नास्पृशन जलम् ॥ ६२ ॥ स्नान कर चुकनेपर ऊपर बताये अनुसार वस्त्र पहनकर आचमन करे । खड़े खड़े या टेढ़ा-मेढ़ा होकर आचमन न करे तथा मंत्रका उच्चारण किये बिना या जलको छूए बिना भी न करे ।। ६२ ॥
सव्यहस्तेन व्यङ्गुल्या शङ्खीकृत्य पिबेत्पयः ।
माषमात्रं प्रमाण स्याज्जलमाचमने शुभम् ॥ ६३ ॥ दाहिने हाथकी तीन अंगुलियोंको शंखके आकर बना कर उड़दके बराबर जल पीवे । क्योंकि आचमनमैं इतना ही जल शुभ गिना जाता है ॥ ६३ ॥
सम्मृज्यात्तिर्यगास्यं त्रिः संवृत्याङ्गुष्ठमूलतः। .
अधोवक्त्रसुपरिष्टातलेन द्विः सम्मार्जयेत् ॥ ६४ ॥ आचमन करनेके बाद, दोनों ओठोंको मिलाकर अँगूठेके नीचले भागसे तीन बार टेढ़ा स्पर्शन करे । तथा हाथकी हतेलीसे नीचेकी ओठको ऊपरकी ओरसे दो बार स्पर्शन करे ॥ ६४॥
एकवार स्पृशेदास्यं तर्जन्यायंगुलिप्रिमिः ॥ प्राबरन्प्रदर्य स्पृशेपर्जन्यङ्गुष्ठयुग्मतः ।। ६५ । स्पृशेचाक्षिद्वयं साक्षादनामिकांगुष्ठतोऽपि च । श्रोत्रयोर्युगलं पश्चात्कनिष्ठिकाङ्गुष्ठयोगतः ॥ ६६ ।। अंगुष्ठेन तु नाभिं च करतलेन वक्षसि ।
पाहुयुग्मं कराग्रेण सवोमिमेस्तकं स्पृशेत् ॥ ६७ ॥ तर्जनी, मध्यमा और अनामिका इन तीन उँगलियोंसे मुखका, तर्जनी और अँगूठेसे नाकके दोनों छेदोंका, अनामिका और अंमूळेसे दोनों आँखोंका, कनिष्ठा और अँगूठेले दोनों कानोंका,