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सोमसेनगारपाविरचित
जिनमादोदकाहण। गन्धद्रव्यविमित्रैश्च जलैः संस्नापयेत्पुनः।
पादोदकं जिनेन्द्रस्य प्रकुर्यात्स्वस्य मूनि ॥ ९९ ॥ पश्चात् उत्तम गंधद्रव्यसे मिले हुए जलसे जिन भगवानका अभिषेक करे । और उस पादोदकको अपने शिर पर चढ़ावे-लगावे ॥ ९९॥
__ अष्टद्रव्यार्चन। वस्त्राञ्चलैरतथागुच्य संस्थाप्य यन्त्रमभ्यतः ।
पूजयेदृष्टया द्रव्यैर्निर्मलैवन्दनादिभिः ॥ १० ॥ पश्चात् प्रतिमाको वस्त्रसे पोंछ कर उसी सिंहासनमें लिखे यंत्र पर स्थापन कर आठ प्रकारके निर्मल चन्दनादि द्रव्योंसे पूजा करे ॥ १०० ॥
सिद्धयंत्रादिपूजन। ततः सिद्धादिग्रन्त्राणि श्रुतं गुरं र पूजयेत् ।
यक्ष्यक्षीसुरान्सर्वान्यथायोग्यमभ्यर्चयेद ॥ १०१॥ इसके बाद सिद्धादि यंत्रोंकी, शाम्र और गुरुकी पूजा करे । तथा सम्पूर्ण यक्ष यक्षी आदि शासनदेवोंकी यथायोग्य पूजा करे–सत्कार करे ॥११॥
शेषधारण। त्रिःपरीत्य जिनाधीशं भक्स्या नत्वा पुनः पुनः।
जिनश्रीपादपीठस्थां शेषां शिरशि धारयेत् ॥ १०२ ॥ जिनेद्रदेवकी तीन प्रदक्षिणा देकर और भक्तिभावसे बार बार नमस्कार कर जिनपीठपर रक्सी हुई शेषा (आशिंका) को शिरपर धरे ॥ १०२ ॥
अथ होमविधि। एवमाराधमां कृस्वा होमशाला ततो प्रजेत् ।
समिधाद्यर्चनाद्रव्यं गृहीत्वा निनमार्यया ॥ १०३ ॥ इस प्रकार जिनदेवकी पूजा कर, अपनी सधर्मिणी द्वारा समिध आदि अर्चना द्रव्यको लेकर होमशालामें जाने ॥ १०३॥