________________
सोमसेनभट्टारकविराषित
सत्यदेवाः परे पञ्च जिनेन्द्रसिद्धसूरयः। .
पाठकसाधुयोगीन्द्राश्चैते मोक्षस्य हेतवः ॥२०२॥ देव चार प्रकारके होते हैं । एक सत्यदेव, दूसरे क्रियादेव, तीसरे कुलदेव, चौथे गृहदेव । मोक्षके कारण अर्हन्स, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु ये पांच सत्यदेव कहलाते हैं ॥ २०१॥२०२॥
क्रियादेवता। छत्रचक्राग्निभेदाच क्रियादेवास्त्रयो मताः।
सर्वविघ्नहराः पूज्या हव्यपकानदीपकैः ॥२०३ ॥ छत्र, चक्र और अग्नि इन भेदोंसे क्रियादेव तीन प्रकारके माने गये हैं जो सम्पूर्ण विघ्नोंको हरण करनेवाले हैं और हव्य, पक्वान्न, दीपक आदिके द्वारा पूजनीय हैं ॥ २०३ ॥
कुलदेवता। वंशे पुरातनरिष्टा नित्यसौख्यविधायकाः।
चक्रेश्वर्यम्बिकापमा इत्यादिकुलदेवताः ॥ २०४॥ अपने वंशमें पुरातन पुरुषोंके द्वारा माने हुए, निरन्तर सुख देनेवाले चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावती आदि कुलदेव कहे जाते हैं ॥ २०४॥
गृहदेवता। विश्वेश्वरीधराधीशश्रीदेवीधनदास्तथा ।
गृहे लक्ष्मीकरा ज्ञेयाश्चतुर्धा वेश्मदेवताः ॥ २०५ ॥ विश्वेश्वरी, धरणेन्द्र,श्रीदेवी और कुबेर ये चार घरमें सम्पत्ति बढ़ानेवाले गृहदेवता जानने ॥२०५॥
सत्यदेव । साक्षात्पुण्यस्य हेत्वर्थ मुक्त्यर्थं मुक्तिदायकाः ।
पूज्याः पूज्यश्च सम्पूज्याः सत्यदेवा जिनादयः ॥ २०६ ॥ जो साक्षात् पुण्यके कारणोंके लिए हैं, मुक्तिके लिए हैं, मुक्तिके देनेवाले हैं, पूज्य हैं और पूज्य पुरुषोंके द्वारा पूजनीय हैं वे जिनादि देवता सत्यदेवता हैं ॥ २०६ ॥
सत्क्रियादेवताः पूज्या होमे शान्त्यर्थमीश्वराः। जनन्यः श्रीजिनेन्द्राणां विश्वेश्वर्य इति स्मृताः ॥ २०७ ॥