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सोमसेनभट्टारकविरचित
भात, दूध, तरह तरहके भक्ष्य पदार्थ, पका हुआ अन्न, खोवा (मावा), मीठे और पके हुए केले इन सबको मिलाकर, बहेड़ा प्रमाण, सुख बाटू में रखकर आशंमें होम करे ॥ १४४ ॥
अन्नाभावे जुहुयात्सु तण्डुलानोषधीन् स्त्वा ।
पयो दधि घृतं चापि शर्करां वा फलानि च ॥ १४५ ॥
यदि अन्न न मिले तो चावल, औषधि, दूध, दही, घृत, शक्कर किंवा फलोंको सुन्च नामके होम पात्र में रखकर इनका होम करे ॥ १४५ ॥
उत्तानेन तु हस्तेन त्वष्टाब्रेग पीडिते ( १ ) ।
संहिताङ्गुलिपाणिस्तु मन्त्रतो जुहुयाद्धविः ॥ १४६ ॥
होम करते समय जिस हाथसे होम करे उसमें हाथकी मिली हुई अंगुलियोंपर होमद्रव्यको रखकर, उसे अंगूठे से दबाकर, हाथको ऊंचा उठा कर, मंत्रोच्चारण पूर्वक उस हविद्रव्यका हवन कुंडमें होम करे ॥ १४६ ॥
दिक्पालोंको कोरान्नाहुति ।
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प्रस्थप्रमाणचणकाढकमाषमुद्र, गोधूमशालियवमिश्रितसप्तधान्यैः । होमे पृथग्विधृतमुष्टिभिरग्निकुण्डे, वा सप्त विषमग्रहदोषशान्त्यै ॥ १४७ ॥
एक सेर चने, उड़द, मूंग, गेहूं, चावल, जब और तिल इन सातों धान्योंको मिला ले | सबका वजन करीब ढाई सेर होना चाहिए। बाद जुदा जुदा एक एक मुट्ठी भर कर क्रूर ग्रहोंकी शान्तिके लिए सात बार अग्निकुंडमें क्षेपण करे । भावार्थ - इसका नाम कोरान्नाहुति है । इसके करने से क्रूर ग्रहों द्वारा होनेवाली बिघ्न-बाधाएँ दूर हो जाती हैं ॥ १४७ ॥
नवग्रह होम |
हुत्वा स्वमन्त्रचितमम्बुनि सप्तसप्तमुष्टिप्रमाणतिलशालियवप्रसत्तिम् । नीत्वा घृतप्लुतसमिद्भिरथाभिकुण्डे, एकादशस्थवदवन्तु सदा ग्रहा वः ।। १४८ ॥
उन नवग्रहों के मंत्रों का उच्चारण करते हुए, एक घड़े में जल भर कर, उसमें सात सात मुट्ठी
तिल, चावल, जब आदि धान्यका हवन करे और इन्हीं धान्यों तथा घृतसे औंसे अग्निकुंडमें हवन करे । ऐसा करनेसे उन नवग्रहोंकी पीड़ा दूर होती है
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भिजोई हुई समिधा
१४८ ॥