________________
त्रैवर्णिकाचार ।
११५
मैं जिन भववानकी पूजा करूँ तब तब आकर, बाल-पूजा ग्रहण कर, उत्तम आचरणके करते समय और जिन भगवानके पूजा-महोत्सवके समय मेरे सारे विघ्नोंको दूर करो । इस तरह दिक्पालसे प्रार्थना करे ॥ १७० ॥
बालुका होम। सम्माय॑ गोमयैर्भूमि गन्धोदकैश्च सिञ्चयेत् । तटिनीवालुकास्तत्र प्रसार्य हस्तमात्रतः ॥१७१ ॥ तदुपर्यश्वत्थैः काष्ठैः शिखराकारसञ्चयम् । कुर्यादन्यैश्च काष्ठै; होमकुण्डे यथा पुरा ॥ १७२ ॥ नवग्रहान् तिथिदेवान् दिक्पालान् शेषदेवकान् । अग्निसन्धुक्षणं कृत्वा पूजयेदमिनायकम् ॥ १७३ ॥ आचमं तर्पणं जायं समिधा त्वादिहोमकम् ।
कुर्याच्छेषं विधानं तु संक्षेपादनिहोमवत् ॥ १७४ ॥ जमीनको गोबरसे लीप कर उसपर गन्धोदक छिड़के । नदीसे बालू मिट्टी लाकर उसपर एक हाय प्रमाण बिछावे । उसके ऊपर पीपलकी लकड़ीका अथवा और किसी लकड़ीका शिखराकार ढेर करे जैसा कि पहले होमकुंड के समय किया था। बाद आनि जला कर नवग्रह, तिथिदेव, दिवपाल और बाकीके देवोंकी तथा अग्निकुमारोंकी पूजा करे । और अग्निहोमकी तरह, आचमन, तर्पण, जाप्य, समिधा-होम आदि सम्पूर्ण विधान संक्षेपसे करे ॥ १७१ ॥ १७४ ॥
होमकरनेके अवसर । व्रतबन्धे विवाहे वा सूतके पातके तथा । जिनगेहप्रतिष्ठायां नूतनगृहनिर्मितौ ॥ १७५ ।। ग्रहपीडादिके जाते महारोगोपशान्तिके । गर्भाधानविधाने तु पित्रादिमरणे तथा ॥ १७६ ॥ कुण्डानां लक्षणं प्रोक्तं प्रागेव होमलक्षणे ।
यथावसरमालोक्य कुयोद्धोमविधिं बुधः ॥ १७७॥ वतोद्यापनके समय, विवाहके समय, सूतक समाप्तिके समय, पातकका प्रायश्चित्त देनेके समय, जिनमन्दिरकी प्रतिष्ठाके समय, नवीन घर बनवानेके समय, ग्रहोंके उपद्रवोंके समय, बड़े