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असे नामिका, स्वेठीले छातीका, हाथके अबभामसे दोनों भुजाओंका और पूरे हाथ मस्तकका स्पर्श करे ॥६५॥६६॥ ६७॥
आचमनेऽङ्गभेदास्तु चैते द्वादशधा मताः ।
क्रियाभेदास्तथा झेयाः पञ्चदशेति संख्यया । ६८ में आचमन करनेमें थे नीचे लिखे बारह अंग माने गये हैं । तथा पन्द्रह तरहकी क्रियाएँ मानी गई हैं । ६८॥
भुजद्वयशिरोनाभिमुखरन्ध्राणि सप्तधा ।
वक्षश्च द्वादशाङ्गानि प्रोक्तानि श्रीजिनाम।। ६९।। दोनों भुजाएँ, दोनों नाकके छेद, दोनों आँखें, दोनों कान, मुख, मस्तक, नाभि और छाती ये बारह अंग जिनागममें कहे गये हैं ।। ६९ ॥
एतेष्वङ्गेषु प्रस्वेदो जायते श्रमयोगतः।
विण्मूत्रोत्सर्जने भोमे भोजने ममनादिषु ।।७।। टट्टी-पेशाब करते समय, स्त्री-संभोग करते समय, भोजन करते समय तथा सोने-उठने, चलनेफिरने आदि क्रियाओंके करते समय श्रम पड़नेसे इन अंगोंमें पसीना आदि उत्पन्न होता रहता है ॥ ७० ॥
श्रोत्रचक्षुर्मुखप्रापकक्षाकुक्षिषु नाभिषु ।
स्रावो जातो यतस्तस्माचाचमनं क्रियते पुनः ॥ ७१ ॥ कान, आँख, मुख, नाक, पसवाड़े, कूख और नाभि इन स्थानोंसे पसीना आदि मल झरता रहता है इसलिए बार बार आचमन किया जाता है ॥ ७१ ॥
आचम्यैवं कुशं कृत्वाऽनामिकायां सुनिर्मलम् । नासायं च तयाङ्गुष्ठकेन धृत्वा विधानतः ॥ ७२ ॥ कुम्भकः पूरकश्चैव रेचकश्च विधीयते ।
अन्तस्थं सकलं पापं रेचकात्क्षयमाप्नुयात् ॥ ७३ ॥ इस प्रकार आचमन कर, अनामिका उँगलीमें डाभकी मुद्रा पहन कर, उस अनामिका और .. अँगूठेसे विधिपूर्वक नाककी अनीको पकड़कर कुंभक, पूरक और रेचक करे । इसी कुंभक, पूरक और रेचकके करनेको प्राणायाम कहते हैं । तथा रेचकके करनेसे आत्मामें बैठे हुए सारे पाप नष्ट हो