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सोमसेनभङ्गादार
• जमा करने की विधि।
समं ध्याने मनः कृत्वा मध्यदेशेषु निश्चलम् । ज्ञानमुद्राङ्कितो भूत्वा स्वाङ्के तु वामहस्तकम् ॥ १११ ॥ तर्जनीभ्यां तु सव्यहस्तेन निर्मलाम् ।
जपमालां समादाय जपं कुर्याद्विचक्षणः ॥ ११२ ॥
ध्यान करते समय सब पदार्थोंमें समताभाव रक्खे, अपने मनको रोककर निश्चल करे – उसे इधर उधरके विषयों न जाने दे । आप स्वयं ज्ञानमुझसे अंकित हो जाय और बायें हाथ को नाभिके पास सीधा रख कर, दाहिने हाथ के अंगूले और तर्जनी उंगली उस पवित्र जपमालाको पकड़ कर जप करे ॥ १११ ॥ ११२ ॥
नमस्कारपञ्चपदान् जपेद्यथावकाशकम् । अष्टोत्तरशतं चार्द्धमष्टाविंशतिकं तथा ॥ ११३ ॥ द्विद्वद्येकपदविश्राम उच्छ्वासाः सप्तविंशतिः । सर्वपापं क्षयं याति जते कञ्चनमस्क्रेते ।। ११४
अपनेको जैसा अवकाश हो उसीके अनुसार पंचनमस्कार मंत्र एकसौ आठ या चौपन या अट्ठाईस जाप देवे । दो दो और एक पदका उच्चारण कर विश्राम लेता जाय - 'अहद्भयो नमः, सिद्धुभ्यो नमः'इन दो पदोंको बोलकर थोड़ासा रुके । फिर 'आचार्योम्यो नमः, उपाध्यायेभ्यो नम:' इन दो पदोंको बोलकर थोड़ासा रुके | बाद 'साधुभ्यो नमः ' इस एक पदको बोलकर रुके । इसी प्रकार एक सौ आठ जाप करे । एक एक श्वासमें इसी तरह बार बार जाप देकर सत्ताईस श्वासों में एक सौ आठ जाप पूरे कर दे | इस विधि के अनुसार पंचनमस्कार मंत्री जाप करकेसे सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं ॥ ११३ ॥ ११४ ॥
वाचिकाख्य उपांशु मानसखिविधः स्मृतः । त्रयाणां जपमालानां स्याच्छ्रेष्ठो ह्युत्तरोत्तरः ।। ११५ ॥
जपमालाके तीन भेद माने गये हैं । वाचिक, उपांशु और मानस । इन तीनों जपमालाओं में बाचिकसे उपांशु और उपांशुसे मानसिक श्रेष्ठ गिना जाता है। इनके क्रमसे लक्षण कहे जाते हैं ॥ ११५ ॥
यदुच्चनीचस्वरितैः शब्दैः स्पष्टपदाक्षरैः ।
मन्त्रमुच्चारयेद्वाचा जपो ज्ञेयः सः बाचिकः ॥ ११६ ॥
१ इसके आगे किसी किसी पुस्तकमें ' प्राप द्वैवं तव नुति इत्यादि एकीभाव स्तोत्रका श्लोक पाया.
जाता है