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.... ब्रह्महत्या करनेवाला पुरुष, गोहत्या केरनवाला पुरुष, चौर अथवा सब तरहके पापोंका करनेपाला पुरुष जिन भगवान्के चरणस्पर्शित गन्धका लेप करनेसे उसी समय अपने किये हुए पापकाँसे उन्मुक्त हो जाता है ॥ ८२॥
गंध लगामेकी उँगलियोंका फाल। अङ्गुष्ठः पुष्टिदः प्रोक्तो यशसे मध्यमा भवेत् ।
अनामिका श्रियं दद्यान्मुक्तिं दद्यात्प्रदेशिनी ॥ ८३ ॥ अँगूठा पुष्टि देनेवाला है, मध्यमा यशके लिए होती है, अनामिका लक्ष्मी देती है और तर्जनी मुक्ति प्रदान करती है। भावार्थ-अँगूठेसे तिलक करनेसे शारीरिक पुष्टि होती है। मध्यमासे यश फैलता है । अनामिकासे लक्ष्मीका और तर्जनीसे मुक्तिका समागम प्राप्त होता है ॥ ८३ ॥
श्रीकामः पुष्टिकामो वा यथेष्टं तिलकं चरेत् ।
अभ्यंगोत्सवकाले तु कस्तूरीचन्दनादिना ॥ ८४ ॥ लक्ष्मीके चाहनेवाले अथवा शारीरिक पुष्टि चाहनेवाले पुरुषको चाहिए कि वह अपने योग्य तिलक सदा लगावे । तथा तैल मर्दन करनेके बाद स्नान कर चुकने पर अथवा कोई तरहके उत्सवके समय कस्तूरी चन्दन आदिका तिलक लगावे ॥ ८४॥
जपो होमस्तथा दानं स्वाध्यायः पितृतर्पणम् ।
जिनपूजा श्रुताख्यानं न कुयोत्तिलकं विना ॥८५॥ जप, होम, दान, स्वाध्याय, पितृतर्पण, जिन-पूजा और शास्त्रका व्याख्यान इतने कार्य तिलक लगाये विना न करे ॥ ८५ ॥
वस्त्रयुग्मं यज्ञसूत्रं कुण्डले मुकुटस्तथा ।
मुद्रिका कंकणं चेति कुर्याचन्दनभूषणम् ॥ ८६ ॥ पहनने ओढ़नके दोनों वस्त्र, यज्ञोपवीत, दोनों कानोंके दोनों कुण्डल, मुकुट, मुद्रिका (छल्ला ) दोनों हाथोंके दोनों चूड़े (कड़े) इनको चन्दनसे सुशोभित करे--उपर्युक्त कार्य करते समय इन सब चीजों पर चन्दन लेप करे ॥ ८६ ॥
ब्रह्मग्रन्थिसमायुक्तं दमैत्रिपञ्चमिः स्मृतम् ।
मुष्टयगं वलयं रम्यं पवित्रमिति धार्यते ॥ ८७ ॥ तीन अथवा चार दर्भ लेकर उनमें ब्रह्मगाँठ लगावे । ब्रह्मगाँठके बाहर निकले हुए दभोंके अग्र