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सोमसेनमारकीपरचितकुरलाको बारबार अपनी जगह से कुछ दूर फेक जिससे कि अपने उपर पुनः छीटेंग्न आवें । इसके बाद पूर्वको या उत्तरकी ओर मुँह करके दो बार आचमन केरे । पश्चात् मौनयूर्वक योग्य दतौनसे दन्तवन करे। जो इस तरह मुखाद्धि न कर वासी मुँह रहती है वह मनुष्य महा अशुद्ध होता है । ६१-६२ ॥
करने योग्य दत्तौन । खाशरश्च करिञ्जश्च कदम्बश्च वटस्तथा । तित्तिणी वेणुवृक्षश्च निम्ब आम्रस्तथैव च ॥६३ ॥ अपामार्गश्च बिल्वश्च हर्क आमलकस्तथा ।
एते प्रशस्ताः कथिता दन्तधावनक्रमेसु ॥६४ ॥ खदिर, करंज, कदंब, बड़, इमली, वेणुवृक्ष, नीम, आम, अपामार्ग, बिल्व, अर्क और आवलेकी दतौन दाँतोंके साफ करनेके लिए प्रशस्त कही गई है । ६३-६४
समिधा क्षीरवृक्षस्य प्रमाण द्वादशाङ्गुलम् ।
कनिष्ठियासमस्थूलं पूर्वार्द्धन त्रिरुक्षिते ( ? ) ॥ ६५ ।। क्षीर वृक्षोंकी दतौन बारह अंगुल लंबी और कनिष्ठा उँगलीके जितनी मोटी होनी चाहिए ॥६५ ।।
न करने योग्य दतौन:गुवाकतालहिन्तालकेतक्यश्च महावटेः। खर्जूरी नालिकरश्च सप्तैते तृणराजकाः ॥६६॥ तृणराजसमोपेतो यः कुर्यादन्तधावनम् ।
निर्दयः पापभागी स्यादनन्तकायिकं त्यजेत् ।। ६७ ॥ सुपारी, ताड़, हिंताल, केतकी, महावट, खजूर, और नारियल ये सात वृक्ष तृणराज माने गये हैं । इन तृणराजोंकी दतौनसे जो पुरुष दतौन करता है यह निर्दयी और पापी होता है । क्योंकि इनकी दतौनके भीतर अनन्त जीव रहते हैं, अतः इनकी दत्तौनका त्याग करे ॥६६-६७ ॥
द्वितीया पञ्चमी चैव ह्यष्टम्येकादशी तथा । चतुर्दशी तथैतासु दन्तधावं च नाचरेत् ॥ ६८ ॥ अर्कवारे व्यतीपाते संक्रान्तौ जन्मवासरे ।
वर्जयेद्दन्तकाष्ठं तु व्रतादीनां दिनेषु च ।। ६९ ।। दौज, पंचमी, अष्टमी, ग्यारस और दस इन पाँचों पंवामें काष्ठकी दतौनसे दन्तवन न करे । तथा रविवार, अशुभ दिन, संक्रान्ति, अपना जन्मदिन और दर्शलक्षण, रत्नत्रय, अष्टान्हिका आदि व्रतोंके दिन भी न करे ॥ ६८-६९ ॥