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जब धोती पहनना शुरू करे तब एक तरफ थोड़ी और दूसरी तरफसे अधिक लंबी रख्खे । उसको कमरके चारों तरफ लपेटे । पहले बायें हाथकी कोण (काँछ) को दाहिने हाथकी तरफ लावे, बाद दाहिनेकी तरफसे बायें हाथकी तरफ ले जावें । बाद छोटी कोणको नीचेकी तरफसे खोसे । पीछे जो बड़ी कोण है उसको कटीके चारों और करधोनीकी तरह लपेट कर उसे भीतरकी ओरसे खोसे । ४४ ॥ ४५ ॥
आजानुकं तथाऽऽजई चानलीकं गृहोत्तमैः ।
धारयेदुत्तरीयं तु यथादेहं पिधापयेत् ॥ ४६॥ गृहस्थोंको जंघा पर्यंत, गौड़े पर्यंत, और मुरचे (पाणिं ) पर्यन्त धोती पहननी चाहिए । तथा ओढ़नेका दुपट्टा इस तरह ओड़ना चाहिए जिससे सारी देह ढक जाय ॥ ४६॥
आजानुकं क्षत्रियाणामाजई वैश्यसम्मतम् ।
आघौण्टं ब्रह्मपुत्राणां शूद्राणां शूद्रवन्मतम् ॥ ४७॥ क्षत्रिय जंघा पर्यंत, वैश्य गौड़े पर्यंत और ब्राह्मण घुटने पर्यन्त धोती पहने । और शद्र लोग जैसा उनमें पहननेका रिबाज हो उसी माफिक पहने ॥ ४७ ॥
नोत्तरीयमधः कुर्यानोपर्यधस्स्थमम्बरम् ।
अज्ञानाद्यदि कुर्वीत पुनः स्नानेन शुध्द्यति ॥४८॥ ओढ़नेके दुपट्टेको धोतीके स्थानमें न पहने और धोतीको दुपट्टेके स्थानमें न ओढ़े। यदि कोई भूलसे ऐसा कर भी ले तो वह फिर स्नान करनेसे शुद्ध होता है ॥ ४८॥
अथोत्तरीयवस्त्रं तु पूर्ववद्धार्यते बुधैः ।
एवं वस्त्रद्वयं धृत्वा धर्मको समाचरेत् ।। ४९॥ बुद्धिमान श्रावक लोग ऊपर बताये हुए क्रमके अनुसार घोतीको घोतीके स्थान पर पहनें और ओढ़नेके दुपट्टेको ओढ़ें । इस प्रकार दोनों क्त्रोंको अच्छी तरह पहन ओड़कर धार्मिक क्रियाएँ करना प्रारम्भ करें । ४९ ॥
ये सन्ति द्रव्यसंयुक्तास्तेषां सर्व निवेदितम् ।
निस्स्पृहाणां दरिद्राणां क्वाशक्ति पिलोकयेत् ॥ ५० ॥ जो पुरुष अच्छे धनी हैं वे तो ऊपर कहे अनुसार नहा धोकर कपड़े आदि पहने-ओढ़ें । और जो षुख्य निस्पृह तथा दरिद्र हैं वे अपनी शक्तिके माफिक एकाध कपड़ा पहन कर ही अपना कार्य चलावें ॥५०॥