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वर्णिकार ।
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पर बीके आँगनकी, देवगृहकी, बिलोकी, मूहाके बिलाकी मिट्टी और शौच करने से बाकी बची हुई मिट्टी ऐसे पाँच स्थानोंकी मिट्टी न ले ॥ ४५ ॥
मलमूत्रसमीपे च वृक्षमूलस्थिता च या ।
वापीकूपतडागंस्था 'न ग्राह्याः पञ्च मृत्तिकाः ।। ४६ ।।
तथा गिरस्तोंको मल-मूत्र करनेकी जगहकी, वृक्षोंकी जड़की, बावड़ी, कुआ और तालाबकी इन पाँच स्थानोंकी भी मिट्टी शौच के लिए काममें न लेनी चाहिए ॥ ४६ ॥
मार्गोषरस्मशानस्था पीसुला मतिमास्त्यजेत् ।
कोटाङ्गारास्थिसंयुक्ता 'नाहरेत्कर्कीरान्विताः ॥ ४७ ॥
तथा रास्तेकी मिट्टी, ऊपर जमीमकी मिट्टी, मशानकी मिट्टी तथा धूल मिट्टी, कीड़े, अंगार, ही और ककड़ आदि से मिली हुई मिट्टी भी न लेना चाहिए ॥ ४७ ॥
आहरेन्मृत्तिकां गेही स्थलीसरित्कूलयोः ।
शुध्दक्षेत्रस्य मध्यस्थां तथा प्रसुखानिजाम् ॥ ४८ ॥
किन्तु साफ की हुई जमीनकी, नदी किनारकी, जोते हुए खेतकी और प्रांसुक खानकी मिट्टी काममें लेवे ॥ ४८ ॥
अलाभे मृदस्तूक्ताया यस्मिन्देशे तु या भवेत् ।
तया शौचं प्रकुर्वीत गृही मृत्तिकयाऽपि च ।। ४९ ।
ऊपर चारों वर्णोंके योग्य जो मिट्टी बताई गई है यदि वह म मिल सके तो जिस देशमें जैसी मिट्टी मिलती हो उसीसे गृहस्थजन शौच कर सकते हैं ॥ ४९ ॥
अर्धबिल्वफलमात्रा प्रथमा मृत्तिका स्मृता ।
द्वितीया तु तृतीया तु तदर्थार्था प्रकीर्तिता ॥ ५० ॥
उस मिट्टीकी कई गोलियें बनावे | पहली गोली बिल्वफलके बराबर बनावे; दूसरी इससे आधी और तीसरी इससे आधी इस तरह आधी आधी बनावे ॥ ५० ॥
एका लिङ्गे करे तिस्र उभयं पादयुग्मके ।
पञ्चापाने नखे सप्त सर्वाने ह्येक एव च ।। ५१ ॥
एक गोलीसे लिंगकी, तीनसे हाथोंकी, दोसे दोनों पैरोंकी, पाँचसे गुदस्थानकी, सात नखोंकी और एकसे सारे शरीरकी शुद्धि करे ॥ ५१ ॥
यद्दिवा विहितं शौच तदर्धं निशि कीर्तितम् । तदर्धमातुरे श्रोत आतुरस्यामध्वनि ॥ ५२ ॥