SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्णिकार । ३५ पर बीके आँगनकी, देवगृहकी, बिलोकी, मूहाके बिलाकी मिट्टी और शौच करने से बाकी बची हुई मिट्टी ऐसे पाँच स्थानोंकी मिट्टी न ले ॥ ४५ ॥ मलमूत्रसमीपे च वृक्षमूलस्थिता च या । वापीकूपतडागंस्था 'न ग्राह्याः पञ्च मृत्तिकाः ।। ४६ ।। तथा गिरस्तोंको मल-मूत्र करनेकी जगहकी, वृक्षोंकी जड़की, बावड़ी, कुआ और तालाबकी इन पाँच स्थानोंकी भी मिट्टी शौच के लिए काममें न लेनी चाहिए ॥ ४६ ॥ मार्गोषरस्मशानस्था पीसुला मतिमास्त्यजेत् । कोटाङ्गारास्थिसंयुक्ता 'नाहरेत्कर्कीरान्विताः ॥ ४७ ॥ तथा रास्तेकी मिट्टी, ऊपर जमीमकी मिट्टी, मशानकी मिट्टी तथा धूल मिट्टी, कीड़े, अंगार, ही और ककड़ आदि से मिली हुई मिट्टी भी न लेना चाहिए ॥ ४७ ॥ आहरेन्मृत्तिकां गेही स्थलीसरित्कूलयोः । शुध्दक्षेत्रस्य मध्यस्थां तथा प्रसुखानिजाम् ॥ ४८ ॥ किन्तु साफ की हुई जमीनकी, नदी किनारकी, जोते हुए खेतकी और प्रांसुक खानकी मिट्टी काममें लेवे ॥ ४८ ॥ अलाभे मृदस्तूक्ताया यस्मिन्देशे तु या भवेत् । तया शौचं प्रकुर्वीत गृही मृत्तिकयाऽपि च ।। ४९ । ऊपर चारों वर्णोंके योग्य जो मिट्टी बताई गई है यदि वह म मिल सके तो जिस देशमें जैसी मिट्टी मिलती हो उसीसे गृहस्थजन शौच कर सकते हैं ॥ ४९ ॥ अर्धबिल्वफलमात्रा प्रथमा मृत्तिका स्मृता । द्वितीया तु तृतीया तु तदर्थार्था प्रकीर्तिता ॥ ५० ॥ उस मिट्टीकी कई गोलियें बनावे | पहली गोली बिल्वफलके बराबर बनावे; दूसरी इससे आधी और तीसरी इससे आधी इस तरह आधी आधी बनावे ॥ ५० ॥ एका लिङ्गे करे तिस्र उभयं पादयुग्मके । पञ्चापाने नखे सप्त सर्वाने ह्येक एव च ।। ५१ ॥ एक गोलीसे लिंगकी, तीनसे हाथोंकी, दोसे दोनों पैरोंकी, पाँचसे गुदस्थानकी, सात नखोंकी और एकसे सारे शरीरकी शुद्धि करे ॥ ५१ ॥ यद्दिवा विहितं शौच तदर्धं निशि कीर्तितम् । तदर्धमातुरे श्रोत आतुरस्यामध्वनि ॥ ५२ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy