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आवश्यक दिग्दर्शन है। कुछ को बच्चों की देखभाल करनी पड़ती है। इस पर भी कड़ी नज़र रखी जाती है कि कोई किसी प्रकार की दुष्टता या काम चोरी न करने पाए ! और उन श्रास्ट्रलिया की नदियों में पाई जाने वाली निशानेबाज मछलियों की कहानी भी कुछ कम विचित्र नहीं है । यह मछली अपने शिकार की ताक में रहती है। जब यह देखती है कि नदी के किनारे उगे हुए पौधों की पत्तियों पर कोई मकवी या मकोड़ा बैठा है तो चुपचाप उसके पास जाती है और मुँह में पानी भर कर कुल्ले का ठीक निशाना ऐसे ज़ोर से मारती है कि वह मकोड़ा तुरन्त पानी में गिर पड़ता है और मछली का श्राहार बन कर काल के गाल में पहुँच जाता है । इस मछली का निशाना शायद ही कभी चूकता है ! वैज्ञानिकों ने इसका नाम टॉक्सेप्टेस रक्खा है, जिसका अर्थ है धनुषधारी ! एटलाण्टिक महासागर में उड़ने वाली मछलियाँ भी होती हैं । काफी लम्बा लिख चुका हूँ । अब अधिक उदाहरणों की अपेक्षा नहीं है । न मालूम कितने कोटि पशु-पक्षी ऐसे हैं, जो मनुष्य के समान ही छलछंद रचते हैं, अकल लड़ाते हैं, जाल फैलाते हैं और अपना पेट भरते हैं । अस्तु खाने कमाने की, मौज शौक उड़ाने की, यदि मनुष्य ने कुछ चतुरता पाई है तो क्या यह उसकी अपनी कोई श्रेष्ठता है ? क्या इस चातुर्य पर गर्व किया जाय ? नहीं, यह मनुष्य की कोई विशेषता नहीं हैं ! ___ मानव जीवन का ध्येय न धन है, न रूप है, न बल है और न सांसारिक बुद्धि ही है। यों ही कहीं से घूमता-फिरता भटकता अात्मा मानव शरीर में पाया, कुछ दिन रहा, खाया-पीया, लड़ा झगड़ा, हँसा रोया और एक दिन मर कर काल प्रवाह में आगे के लिए बह गया, भला यह भी कोई जीवन है ? जीवन का उद्देश्य मरण नहीं है, किन्तु मरण पर विजय है। आजतक हम लोगों ने किया ही क्या है ? कहीं पर जन्म लिया है, कुछ दिन जिन्दा रहे है और फिर पाँव पसार कर सदा के लिये लेट गए हैं। इस विराट् संसार में कोई भी भी जाति, कुल, वर्ण और स्थान ऐसा नहीं है, जहाँ हमने
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