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होती है याने अलग अलग रूची होती है इतनाही नही बल्के एक. मनुष्यक भी हर समय एक रूची नही होती है जिस जिस समय जो जो रूची होती है तदानुसार वह कार्य किया करता है। अगर वह कार्य परमार्थके लिये कीसी रूपमें कीसी व्यक्तिके लीये उपकारी होतों उनका अनुमोदन करना और उनसे लाभ उठाना सज्जन पुरुषों का कर्तव्य है ।
raft मुनिश्री कि रुची जैनागमोंपर अधिक है और जनताक सुगमता पूर्वक जैनागमोंका अवलोकन करवा देने के इरा दासे आपने यह प्रवृति स्वीकार कर जनसमाज पर घडा भारी उपकार कीया है इस वास्ते आपका ज्ञानदानकि 'उदार वृत्तिका हम सहर्ष बदा स्वीकार करते है और साथ में अनुरोध करते है कि आप चीरकाल तक इस वीर शासनकी सेवा करते हुवे हमारे ४५ आगमोंकों ही इसी हिन्दी भाषाद्वारा प्रगट करे तांके हमारे जेसे लोगोंको मालुम होकि हमारे घरके अन्दर यह अमूल्य रत्न भरे हुवे है ।
अन्तमें हमारे वाचक वृन्दसे हम नम्रता पूर्वक यह निवेदन करते हैं कि आप एक दफे शीघ्र बोध भाग १ से २५ तक मंगवाके क्रमशः पढीये कारण इन भागोंकी शैली एसी रखी गई है कि क्रमशः पढनेसे हरेक विषय ठीक तौरपर समजमें आसकेगें । ग्रन्थकी सार्थकता तब ही हो सक्ती है कि ग्रन्थ आद्योपान्त पढे और ग्रन्थकर्ताका अभिप्रायकों ठीक तोर पर समजे । बस हम इतना ही कहके इस प्रस्तावनाको यहां ही समाप्त कर देते है। सुज्ञेषु किं 'बहुना !
१६८० का मीती
कार्तिक
ज्ञानपंचमि.
शुद ५
भवदीय, छोगमल कोचर.
प्रेसिडन्ट श्री जैन नवयुवक मित्रमंडल. मु० लोहावट - मारवाड.