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(१८) . आठ आना सहज ही में निकल जायेंगे और यहां रूपैये जमा । होंगे उनों से और भी ज्ञान वृद्धि होगी. सिर्फ बारहा सूत्रों के भाषान्तरकि किंमत कुच्छ अधिक रखी गइ है इसका कारण यह है कि इसमें च्यार छेदसूत्रोंका भाषान्तर भी साथ में है जो कि जिनोंको खास आवश्यका होगा यह ही मंगावेगा। तथापि महेनत देखतो किंमत ज्यादा नहीं है शेष कितावेंकी किंमत हमारे उद्देश माफीक ही रखी गई है. पाठकगण किंमत तर्फ ध्यान न दे किन्तु ज्ञान तर्फ दे कि जिन सूत्रोंका दर्शन होना भी दुर्लभ थे वह आज आपके करकमलो में मोजुद है इसका ही अनुमोदन करे । अस्तु।
वि. सवत् १९७९ का फागण वद २ के रोज श्रीमान्मुनि महाराजश्री श्रीहरिसागरजी तथा श्रीमान् ज्ञानसुन्दरजी महाराज ठाणे ४ का शुभागमन लोहावट ग्राम में हुवा. श्रोतागणकी दीर्घ काल से अभिलाषा थी कि मुनि श्रीज्ञानसुन्दरजी महाराज पधारे तों आपश्रीके मुखाविद से श्री भगवतीजी सूत्र सुने. तीन वर्षों से विनंती करते करते आप श्रीमानोंका पधारना होनेपर यहांके श्रावकोने आग्रे से अर्ज करनेपर परम दयालु मुनि श्रीने हमारी अर्ज स्वीकार कर मीती चैत पद ६ के रोज श्री भगवतीजी सूत्र सुबे व्याख्यानमें फरमाना प्रारंभ किया जिस्का म. होत्सव वरघोडा रात्रीजागराणादि शा रत्नचंदजी छोगमलजी पारख कि तर्फसे हुवा था इस शुभ अवसर पर फलोधीसे श्रीजैन नवयुवक प्रेम भंडल तथा अन्यभी श्रावकवर्ग पधारे थे घरघोडा का दर्श-अंग्रेजीबाजा ग्यानमंडलीयों ओर सरकारी कर्मचरियों पोलीस आदिसे बडा ही प्रभावशाली दीखाइ देते थे श्री भगव. तीजी सूत्रकि पूजामें अठारा सोनामोहरों मीलाके करीबन रू १०००) की आवादानी हुइथी जिस्का श्री संघसे यह ठेराव हुवा कि इन आवादानीसे तत्व ज्ञानमय पुस्तकें छपा देना चाहिये ।