________________
(१६) कीताबोंके जरिये तीर्थकी प्रसिद्धि और आबादि भी अच्छी हुइथी... चुनिलालभाइ स्वर्गवास होनेके बाद में पुस्तकोंकि व्यवस्था ठीक न रहेनेसे नमुनाके तौरपर पुस्तकों ओशीयों रखके शेष सब पुस्तकों फलोधी मगवा लि गइ थी अब इन संस्थाका कार्य बहुत ही उत्साह से चलता है स्वल्प ही समयमें ७५ पुष्पकि करीबन् १५३००० पुस्तके छप चुकी है जिसमें प्रतिमाछत्तीसी, गयवरविलास, दानछत्तीसी, अनुकम्पाछत्तीसी, प्रश्रमाला, चर्चाका पब्लिक नोटीस, लिंगनिर्णय, सिद्धप्रतिमा, मुक्तावली, बत्तीससूत्रदर्पण, डंकेपर चोट, आगमनिर्णय और व्यवहार चूलिकाकि समालोचना यह बारहा पुस्तके तो मूर्तिउत्थापक ढुंढीये तेरेपन्थीयोंके बारे में लिखी गइ है जिस्में सप्रमाण मूर्ति और दया दानका प्रतिपादन किया गया है और स्तवन संग्रह भाग २-२-३-४, दादासाहिब कि पूजा, देवगुरु वन्दनमाला, जैन नियमावला, चौरासी आशा. तना, चैत्यबन्दनादि, जिनस्तुति, सुबोधनियमावली, प्रभु पूजा, जैन दीक्षा, तीर्थयात्रास्तवन, आनन्दधन चौवीसी, सजाय, गहुं. लीयों, राइदेवसि प्रतिक्रमण, उपकेशगच्छ पट्टावली इन १८ पुस्तको में देवगुरुकी भक्तिसाधक स्तबन, स्तुतियों, चैत्यवंदनों आदि है। व्याख्याबिलास भाग १-२-३-४, मेज्ञरनामों, तीन निर्नामा लेखोंका उत्तर, ओशीयों तीर्थके ज्ञान भंडारकि लीष्ट, अमे साधु शा माटे थया, विनती शतक, कवाबत्तीसी, वर्णमाला, तीन चतुर्मासोंका दिग्दर्शन और हितशिक्षा यह १३ पुस्तकों में वस्तुस्वरूप निरूपण या उपदेशका विषय है । दशवैकालिकसूत्र, सुखविपाकसूत्र और नन्दीसूत्र एवं तीन सूत्रोंका मूल पाठ है । शीघ्रबोध भाग १-२-३-४-५-६-७-८-९-१०-११-१२ १३-१४१५-१६-१७-१८-१९-२०-२१-२२-२३-२४-२५ ॥ पैतीस बोल, द्रव्यानुयोग प्रथम प्रवेशिका, गुणानुरागकुलक और सूचीपत्र इन २९ पुस्तको में श्री भगवती सूत्र, पन्नवणाजी सूत्र, जीवाभिगमजी